मक़तूब (पत्र) -1

(जो मदीने से बसरे की जानिब (ओर) रवाना होते हुए अहले क़ूफ़ा (क़ूफ़ा वासियों) के नाम तहरीर फ़रमाया)

खुदा के बन्दे (दास) अली, अमीरुल मोमिनीन (अ0 स0), की तरफ से अहले कूफ़ा के नाम----जो मददगारों (सहायकों) में सर आबुर्दा (श्रेष्ठ) और क़ौमे अरब में बलन्द नाम( ऊंचे नाम वाले) हैं। मैं उसमान के मुआमले से तुम्हें इस तरह आगाह (अवगत) किये देता हूं कि सुनने और देखने में कोई फ़र्क न रहे। लोगों ने उन पर एतिराज़ात (आपत्तियां) किये तो मुहाजिरीन (शरणार्थियों) में से एक ऐसा था जो ज़ियादा से ज़ियादा कोशिश करता था कि उन की मर्ज़ी के खिलाफ़ कोई बात न हो, और शिकवा शिकायत बहुत कम करता था। अलबत्ता तलहा और ज़ुबैर की हल्की से बल्कि रफ़्तार भी तुन्द व तेज़ थी, और नर्म से नर्म आवाज़ भी सख्ती व दुरुश्ती (कठोरता व निर्दयता) लिये हुए थी, और उन पर आइशा को भी बेतहाशा गुस्सा था। चुनांचे एक गिरोह आमादा हो गया और उसने उन्हें कत्ल कर दिया, और लोगों ने मेरी बैअत कर ली। इस तरह न उन पर कोई ज़बरदस्ती थी, और न उन्हें मजबूर किया गया था, बल्कि उन्हों ने रग़बत व इख़तियार से ऐसा किया।

और तुम्हें मअलूम होना चाहिये कि दारुल हिजरत (मदीना) अपने रहने वालों से खाली हो गया है, और उस के बाशिन्दों (वासियों) के क़दम वहां से उख़ड़ चुके हैं, और वह देग की तरह उबल रहा है, और फ़ितने की चक्की चलने लगी है। लिहाज़ा (अतः) अपने अमीर (शासक) की तरफ़ तेज़ी से बढ़ो और अपने दुशमनों से जिहाद करने के लिये जल्दी से निकल खड़े हो।

इबने मीसम ने तहरीर किया है कि जब अमीरुल मोमिनीन (अ0 स0), तलहा व ज़ुबैर की शोरिश अंगेज़ियों की ख़बर सुन कर बसरे की जानिब रवाना हुए तो मक़ामे माउल उज़ैव से इमामे हसन (अ0 स0) और अम्मारे यासिर के हाथ वह ख़त अहले कूफ़ा के नाम भेजा। और इबने अबिल हदीद ने यह रिवायत लिखी है कि जब हज़रत ने रबज़ा में मंज़िल की तो इबने जअफ़र और मोहम्मद इबने अबी बकर के ज़रीए इसे रवाना किया।

हज़रत ने इस मक़तूब में वाज़ेह तौर (स्पष्ट रुप) से इस अम्र पर रौशनी ड़ाली है कि हज़रत उसमान क़त्ल उम्मुल मोमिनीन आइशा और तलहा व ज़ुबैर की कोशिशों का नतीजा था, और वही इस में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने वाले थे, और हज़रत आइशा तो अपने हुदूदे कार (कार्य सीमा) का लिहाज़ किये बग़ैर आम इजतिमाअत में उन की बे उन्वानियों को बे नक़ाब कर के उन के क़त्ल का हुक़म दिया करती थीं। चुनांचे शैख मोहम्मद अब्दोहू ने तहरीर किया है किः---

हज़रत आइशा ने जब कि हज़रत उसमान मिंबर पर थे, रसूल (स0) की जूतियां और क़मीस निकाली और उन से कहा कि यह रसूलुल्लाह (स0) की जूतियां और उन की कमीस है। अभी यह चीज़ें पुरानी भी न हुई कि तुम ने उन के दीन को बदल दिया, और सुत्रत को मस्ख़ कर दिया। फिर दोनों में बहुत ज़ियादा तल्ख़ कलामी हुई और हज़रत आइशा ने कहा कि इस नअसल (यहूदी) को क़त्ल कर ड़ालो। हज़रत आइशा उन्हें एक मशहूर आदमी से तशबीह (उपमा) देते हुए नअसल कहा करती थीं।

लोग हज़रत उसमान के हाथों नालां तो थे ही, इन बातों से उन की हिम्मत बंधी और उन्हों ने उन को महासिरे (घेरे) में ले लिया ताक़ि वह अपनी रविश में तर्मींम करें या ख़िलाफत से कनारा कश (अलग) हो जायें, और इन हालात में यह अन्देशा था कि अगर उन दो में से एक बात तस्लीम न की तो क़त्ल कर दिये जायेंगे, और यह सब कुछ हज़रत आइशा की नज़रों के सामने था। मगर उन्हों ने उस की तरफ़ तवज्जह न की और उन्हें मुहासिरे (घिराव) में छोड़ कर मक्के जाने का तहय्या कर लिया। हालां कि इस मौक़े पर मरवान और इताब इबने असीद ने उन से कहा भी कि अगर आप अपना सफर मुल्तवी कर दें तो मुम्किन है कि उन की जान बच जाए, और यह हुजूम छट जाए। मगर आप ने फरमाया कि मैं ने हज का मुसम्मम इरादा कर लिया है जिसे बदला नहीं जा सकता। जिस पर मरवान ने बतौरे तमसील (उदाहरणार्थ) यह शेर पढ़ा।

क़ैस ने मेरे ख़िलाफ़ शहरों में आग लगाई और जब वह शोला वर हुए तो दामन बचा कर चलता बना।

इसी तरह तलहा व ज़ुबैर के गुस्से का पारा भी उन के खिलाफ़ चढ़ा रहता था और वह इस आग को भड़काने व मुखालिफ़त को हवा देने में पेश पेश रहते थे, और उस लिहाज़ से बड़ी हद तक क़त्ले उसमान में शरीक और उन के कून के ज़िम्मेदार थे। और दूसरे लोग भी उन के इसी हैसियत से जानते और उन्हीं को क़ातिल ठहराते थे और उन के हवा ख़्वाह भी सफ़ाई पेश कर ने से कासिर रहा करते थे। चुनांचे इबने क़ुतैबा तहरीर करते हैं कि मक़ामे अवतास में हज़रत आइशा से मुग़ीरा इबने शअबा की मुलाक़ात हुई तो उसने आप से दर्याफ्त किया किः---

ऐ उम्मुल मोमिनीन। कहां का इरादा है। फ़रमाया बसरे का। कहा कि वहां क्या काम है। फ़रमाया खूने उसमान का क़िसास लेना है। उस ने कहा कि उसमान के क़ातिल तो आप के हमराह हैं। फिर मरवान की तरफ़ मुतवज्जह हुआ, और पूछा कि तुम्हारा कहां का इरादा है। उस ने कहा कि मैं भी बसरा जा रहा हूं। कहा कि किस मक़सद के लियेष कहा कि उसमान के क़ातिलों से बदला लेना है। उस ने कहा कि उसमान के क़ातिल तो तुम्हारे साथ हैं और इन्हीं तलहा व ज़ुबैर ने तो उन्हें क़त्ल किया था।

बहर सूरत जब यह क़ातिलीने उसमान की जमाअत अमीरुल मोमिनीन (अ0 स0) को मौरिदे इलज़ाम ठहरा कर बसरे में हंगामा आराई के लिये पहुंच गई तो अमीरुल मोमिनीन (अ0 स0) भी इस फ़ितने को दबाने के लिये उठ ख़ड़े हुए और अहले कूफ़ा का तआवुन (सहयोग) हासिल करने के लिये यह ख़त उन्हें लिखा जिस पर वहां के जांबाज़ो और जां निसारों की एक कसीर जमाअत उठ ख़ड़ी हुई और आप की फ़ौज में आ कर शामिल हो गई और पूरी हिम्मत व जवां मर्दी से दुशमन का मुक़ाबिला किया, जिस का अमीरुल मोमिनीन (अ0 स0), ने भी एतिराफ़ किया है। चुनांचे इस के बाद का मक़तूब इसी एतिराफ़े हक़ीक़त के सिलसिले में है।

मकतूब (पत्र) -2

(जो फ़त्हे बसरा के बाद अहले कूफ़ा की तरफ़ तहरीर किया)

खुदा तुम शहर वालों को तुम्हारे नबी (स0) के अहले बैत (अ0 स0) की तरफ़ से बेहतर से बेहतर वह जज़ा दे जो इताअत शिआरों और अपनी नेमत पर शुक्र गुज़ारों को वह देता है। तुम ने हमारी आवाज़ सुनी, और इताअत के लिये आमादा हो गए, और तुम्हें पुकारा गया तो तुम लब्बैक कहते हुए ख़ड़े हो गए।

दस्तावेज़ -3

(जो आप ने शुरैह इबने हारिस, क़ाज़िए कूफ़ा के लिये तहरीर फ़रमाई)

रिवायत है कइ अमीरुल मोमिनीन (अ0 स0), के क़ाज़ी शुरैह इबने हारिस ने आप के दौरे खिलाफ़त में एक मक़ान अस्सी दीनार में ख़रीद किया। हज़रत को इस की खबर हुई तो उन को बुलवा भेजा और फ़रमाया, मुझे इत्तिलाअ मिली है कि तुम ने एक मक़ान अस्सी दीनार में ख़रीद किया है और दस्तावेज़ भी तहरीर की है और उस पर ग़वाहों की ग़वाही भी ड़लवाई है। शरैह ने कहा कि जी हां या अमीरुल मोमिनीन। ऐसा हुआ तो है। (रावी कहता है) इस पर हज़रत ने उन्हें गुस्से की नज़र से देखा और फ़रमाया, देखो। बहुत जल्द ही वह (मलकुल मौत) तुम्हारे पास आ जायेगा जो न तुम्हारी दस्तावेज़ देखेगा और न तुम से गवाहों को पुछेगा, और वह तुम्हारा बोरिया बिस्तर बंधवा कर यहां से निकाल बाहर करेगा, और क़ब्र में अकेला छोड़ देगा। ऐ शुरैह। देखो ऐसा तो नहीं कि तुम ने उस घर को दूसरे के माल से ख़रीदा हो। या हराम की कमाई से क़ीमत अदा की हो। अगर ऐसा हुआ तो समझ लो कि तुम ने दुनिया भी खोई और आख़िरत भी। देखो इस की ख़रीदारी के वक्त तुम मेरे पास आए तो मैं उस वक्त तुम्हारे लिये एक ऐसी दस्तावेज़ लिख देता कि तुम एक दिरहम बल्कि उस से कम को बी उस घर को ख़रीदने को तैयार न होते।

(वह दस्तावेज यह है)

यह वह है जो एक ज़लील बन्दे ने एक ऐसे बन्दे से की जो सफ़रे आख़िरत के लिये पा दर रिकाब है, ख़रीद किया है। एक ऐसा घर जो दुनिया पुर फ़रेब में मरने वालों के मुहल्ले और हलाक़ होने वालों के ख़ित्ते में वाक़े है। जिस के हुदूदे अर्बअ यह है, पहली हद आफ़तों के अस्बाब मुत्तसिल है, दूसरी हद मुसीबतों के एस्बाब से मिली हुई है, और तीसरी हद हलाक़ करने वाली नफ़सानी ख़्वाहिशों तक पहुंचती है, और चौथी हद गुमराह करने वाले शैतान से तअल्लुक रखती है, और इसी हद में इस का दरवाज़ा खुलता है। इस फ़रेब खुर्दए उम्मीद व आर्ज़ू ने इस शख्स से कि जिसे मौत धकेल रही है इस घर को ख़रीदा है। इस क़ीमत पर कि उस की क़िनाअत की इज़्ज़त से हाथ उठा लिया है, और तलब व ख़्वाहिश की ज़िल्लत में जा पड़ा। अब अगर अस सौदे में ख़रीदार को कोई नुक्सान पहुंचे तो बादशाहों के जिस्म को तहो बाला कर ने वाले, गर्दन कशों की जान लेने वाले, और किसरा, क़ैसर और तिबअ व हिमयर ऐसे फ़रमां रवाओं की सल्तनतें उलट देने वाले, और माल समेट समेट कर उसे बढ़ाने, ऊंचे ऊंचे महल बनाने संवारने, अन्हें फ़र्श फुरुश से सजाने, और औलाद के ख़याल से ज़ख़ीरे फ़राहम करने और जागीरें बनाने वालों से सब कुछ छीन लेने वाले के ज़िम्मे है, कि वह इन सब को ले जा कर हिसाबो किताब को मौकिफ़ और अज़ाब व सवाब के महल में ले जा कर खड़ा करे। उस वक्त कि जब हक्को बातिल का दो टूक फ़ैसला होगा और बातिल वाले ख़िसारे (घाटे) में रहेंगे।

गवाह शुद बर ई अक़्लः-----जब ख़्वाहिशों के बंधन से अलग और दुनिया की वाबस्तगियों से आज़ाद हो।

किसरा खुसरो का मुअर्ब (अरबी) है जिस के मअनी उस बादशाह के होते हैं जिसका दाइरए ममलिकत वसीइ हो। यह सलातीने अज़म का लक़ब था। और क़ैसरे शाहाने रुम का लक़ब है जो रुमी ज़बान से उस बच्चे के लिये बोला जाता है जिस की मां जनने से पहले मर जाए और उस का पेट चीर कर बच्चे को निकाला जाए। चूंकि शाहाने रुम में अफ़स्तूस इसी तरह पैदा हुआ था इस वजह से वह इस नाम से मशहूर हो गया और वहां के हर बादशाह के लिये उस ने लक़ब की सूरत इखतियार कर ली।

हिमयर यमन के बादशाहों का लक़ब है। उस हुकूमत का बानी हियर इबने सबा था जिस ने यमन में अपनी सल्तनत की बुनियाद रखी, और फिर उस की औलाद नसलन बादा नसलिन तख्तो ताज की वारिस होती रही। लेकिन कुछ अर्सा बाद अक़सूमी हबशियों ने यमन पर हमला कर के हुकूमत उन के हाथ से छीन ली। मगर उन्हों ने महकूमि.त और ज़िल्लत की ज़िन्दगी गवारा न की, और अपनी मुंतशिर व परागन्दा क़ुव्वतों को यकज़ा कर के अक़सूमियों पर हमला कर दिया और उन्हें शिकस्त दे कर दोबारा इक़तिदार हासिल कर लिया, और यमन के साथ हज़रमूत हबशा और हिजाज़ पर भी अपनी हुकूमत क़ायम कर ली। यह सलातीने हिमयर का दूसरा था जिस में पहला बादशाह हारिसूर्राइश था जो तुब्वअ के लक़ब से तख़्ते हुकूमत पर बैठा और फिर बाद के सलातीन उसी लक़ब से पुकारे जाने लगे। तुब्वअ के मअनी सामी ज़बान में मतवूउ व सर्दार के हैं, और बअज़ के नज़दीक यह हबशी ज़बान का लफ़्ज़ है जिस के मअनी साहबे तसल्लुत व इक़तिदार के हैं।

मक़तूब (पत्र) -4

एक सालारे लशकर (सेनापति) के नामः----

अगर वह इताअत (आज्ञा पालन) की छांव में पलट आयें और नाफ़रमानी (विद्रोह एवं आवज्ञा) ही पर टूटें, तो तुम फ़रमां बरदारों (आज्ञापालकों) को लेकर ना फ़रमानों (अवज्ञाकारियों) की तरफ़ (ओर) उठ खड़े हों. और जो तुम्हारा हम नवा (तुम से सहमत) हो कर तुम्हारे साथ है उस के होते हुए मुंह मोड़ने वालों की पर्वाह न करो। क्यों कि जो बद दिली से साथ हो उस का न होना होने से बेहतर है, और उस का बैठे रहना उस के ख़ड़े हेने से ज़ियादा मुफ़ीद (लाभदायक) साबित हो सकता है।

जब आमिले बसरा उसमान इबने हुनैफ़ ने अमीरुल मोमिनीन (अ0 स0), को तलहा व ज़ुबैर के बसरा पहुंचने की इत्तिलाअ दी और उन के अज़ाइम से आगाह किया, तो हज़रत ने यह ख़त उन के नाम तहरीर किया, जिस में उन्हें यह हिदायत फरमाई है कि अगर दुशमन लड़ाई पर उतर आए तो वह उस के मुक़ाबिले के लिये ऐसे लोगों को साथ न ले कि जो एक तरफ़ हज़रत आइशा तलहा व ज़ुबैर की शख्सीयत से मतअस्सिर (प्रभावित) हों और दूसरी तरफ कहने सुनने से उन के खिलाफ़ जंग पर भी आमादा हो गए हों। क्यों कि ऐसे लोगों से जम कर लड़ने की तवक्को नहीं की जा सकती और न ही उन पर भरोसा किया जा सकता है। बल्कि ऐसे लोग अगर मौजूद रहें तो दूसरों को भी बद दिल बनाने की कोशिश करेंगे। लिहाज़ा ऐसे लोगों को नज़र अन्दाज़ कर देना ही मुफ़ीद साबित हो सकता है।

मक़तूब (पत्र) -5

अशअश इबने क़ैस वालिये आज़र बाइजान के नाम

यह उहदा (पद) तुम्हारे लिये कोई आज़ूका (भोजन) नहीं है बल्कि वह तुम्हारी गर्दन में एक अमानत का फंदा है और तुम अपने हुकमराने वाला की तरफ़ से (उच्चधिकारियों की ओर से) हिफ़ाज़त पर मामूर (संरक्षण हेतू नियुक्त) हो। तुम्हें यह हक़ (अधिकार) नहीं पहुंचता कि रईयत (प्रजा) के मुआमले में जो चाहो कर गुज़रो। खबरदार। किसी मज़बूत दलील के बग़ैर (दृढ़ तर्क के बिना) किसी बड़े काम में हाथ न ड़ाला करो। तुम्हारे हाथों में खुदाए बुज़ुर्गो बरतर के अमवाल में से एक माल है और तुम उस वक्त तक उस के ख़ज़ांची (कोषाध्यक्ष) जब तक मेरे हवाले न कर दो। बहर हाल मैं ग़ालिबन (सम्भवतः) तुम्हारे लिये बुरा हुकमरान (शासक) तो नहीं हूं। वस्सलाम।

जब अमीरुल मोमिनीन (अ0 स0), जंगे जमल से फ़ारिग (निवऋत्त) हुए तो अशअश इबने क़ैस को जो हज़रत उसमान के ज़माने से आज़र बाइजान का आमिल चला आ रहा था, तहरीर फ़रमाया कि वह अपने सूबे का माले ख़िराज व सदाक़त (कर एवं दान) रवाना करे। मगर चूंकि उसे अपना उहदा व मन्सब (पद) ख़तरे में नज़र आ रहा था इस लिये वह हज़रत उसमान के दूसरे उम्माल (कार्यकर्ताओं) की तरह उस माल को हज़्म कर जाना चाहता था। चुनांचे इस ख़त को पहुंचने के बाद उस ने अपने मख़्सूसीन (ख़ास ख़ास लोगों) को बुलाया और उन से इस ख़त का ज़िक्र करने के बाद कहा कि मुझे अन्देशा है कि यह माल मुझ से चीन लिया जाए, लिहाज़ा मेरा इरादा है कि मैं मुआविया के पास चला जाऊं। जिस पर उन लोगों ने कहा कि यह तुम्हारे लिये बाइसे नंगो आर (लज्जा जनक) है कि अपने क़ौम व क़बीले को छोड़ कर मुआविया के दामन में पनाह (शरण) लो। चुनांचे उन लोगों के कहने सुनने से उस ने जाने का इरादा मुल्तवी तो कर दिया, मगर उस माल को देने पर आमादा न हुआ। जब हज़रत को इस की इत्तिलाअ हुई तो ाप ने उसे कूफ़ा तलब करने के लिये हुज्र इबने अदीए किन्दी को रवाना किया। जो उसे समझा बुझा कर कूफ़े ले आए। यहां पहुंचने पर उस का सामान देखा गया तो उस में चार लाख दिरहम पाए गए जिस में से तीस हज़ार हज़रत ने उसे दे दिये और बक़िया बैतुलमाल में दाख़िल कर दिया।

मक़तूब (पत्र) -6

मुआविया इबने अबि सुफ़यान के नाम।

जिन लोगों ने अबी बकर, उमर, उसमान की बैअत की थी उन्हों ने मेरे हाथ पर उसी उसूल के मुताबिक़ बैअत की जिस उसूल पर वह उन की बैअत कर चुके थे और िस बिना पर जो हाज़िर है उसे फिर नज़रे सानी का हक़ नहीं है, और जो बरवक्त मौजूद न हो, उसे रद करने का अख़तियार नहीं, और शूरा का हक़ सिर्फ़ मुहाजिरीन व अंसार को है। वह अगर किसी पर एका कर लें और उसे क़लीफ़ा समझ लें तो उसी में अल्लाह की खुशनूदी समझी जायेगी। अब जो कोई उस की शख्सीयत पर एतिराज़ या नज़रीया इख़तियार करता हुआ अलग हो जाए तो उसे वह सब उसी तरफ़ वापस लायेंगे जिधर से वह मुंहरिफ़ हुआ है। और अगर इन्कार करे तो उस से लड़ें क्यों कि वह मोमिनों के तरीक़े से हट कर दूसरी राह पर हो लिया है। और जिधर वह फिर गया है, अल्लाह तआला बी उसे उधर ही फेर देगा।

ऐ मुआविया। मेरी जान की क़सम। अगर तुम अपनी नफ़्सानी ख़्वाहिशों से दूर हो कर अक़्ल से देखो, तो सब लोगों से ज़ियादा मुझे उसमान के कून से बरी पाओगे, मगर यह कि तुम बोहतान बांध कर खुली हुई चीज़ों पर पर्दा डालने लगो। वस्सलाम।

जब अमीरुल मोमिनीन (अ0 स0) के हाथ पर तमाम अहले मदीना ने बिला इत्तिफाक बैअत कर ली, तो मुआविया ने अपने इक़तिदार को ख़तरे में महसूस करते हुए बैअत से इन्कार कर दिया और आप की ख़िलाफ़त के सेहत को महल्ले नज़र क़रार देने के लिये यह उज्र तराशा कि यह उमूमी इन्तिख़ाब से क़रार नहीं पाई। लिहाज़ा इस इन्तिख़ाब को मुस्तरद कर के दोबारा इन्तिख़ाबे आम होना चाहिये। हालंकि जिस खिलाफत से उसूल इन्तिखाब की बुनियाद पड़ी, वह एक नागहानी सूरत हाल की नतीजा थी जिस में आम अफ़राद की राय दहिंदगी का सवाल ही नहीं पैदा होता कि उसे उमूमी इखतियार का नतीता कहा जा सके। अलबत्ता अवाम पर पाबन्दी आयद कर के उसे फ़ैसलए जमहूरीया से तअबीर कर लिया गया। जिस से यह उसूल क़रार पा गया कि जिसे अकाबिरे मदीना मुन्तखब कर लें वह तमाम दुनियाए इस्लाम का नुमाइन्दा मुतसव्विर होगा, और किसी को उस में चूनो चरा की गुंजाइश न होगी। ख्वाह वह इन्तिखाब के मौक़े पर मौजूद हो या न हो। बहर सूरत इस उसूल के क़रार पा जाने के बाद मुआविया को यह हक़ न पहुंचता था कि वह दोबारा इन्तिखाब की तहरीक या बैअत से इन्कार करे। जब कि वह अपने तौर पर उन खिलाफ़तों को सहीह तस्लीम कर चुका था कि जिन के मुतअल्लिक़ यह दअवा किया जाता है कि वह मदीने के अहले हल्लो अक़्द ने तय की थीं। चुनांच जब उस ने इस इन्तिखाब को ग़लत क़रार देते हुए बैअत से इन्कार किया, तो अमीरुल मोमिनीन (अ0 स0) ने उसूले इन्तिखाब को उस के सामने पेश करते हुए उस पर हुज्जत तमाम की, और यह वही तर्ज़े  कलाम है जो (हरीफ़ के सामने उस के ग़लत मुसल्लमात को पेश कर के उस पर हुज्जत क़ायम करना) से तअबीर किया जाता है। क्यो कि तिसी मर्हले पर अनीरुल मोमिनीन (अ0 स0) ने खिलाफ़त की सेहत का मेयार शूरा और राए आम्मा को नही समझा, वर्ना जिन खिलाफ़तो के मुतअल्लिक़ यह कहा जाता है कि वह मुहाजिरीन व अन्सार के इत्तिफ़ाके राय से क़रार पाई थीं आप उस राए आन्ना को सनद व हुज्जत समझते हुए उन को सहीह व दुरूस्त समझते। इस लिये आप हर दौर में इस्तेहक़ाक़े ख़िलाफ़त को पेश करते रहे कि रसूलुल्लाह (स0) से क़ौलन व अमलन साबित था। मगर मुआविया के मुक़ाबिले में उसे पेश करना सवालो जवाब का दरवाज़ा खोल देना था। इस लिये उसी के मुसल्लमात व मोतक़िदात से उसे कायल करना चाहा ताकि उस के लिये तावीलात के उलझावे ड़ालने की कोई गुंजाइश बाकी न रहे। वर्ना वह तो यह चाहता ही था कि किसी तरह बात बढ़ती जाए ताकि किसी मोड़ पर उस के मुतज़लज़ल इकतिदार को सहारा मिल जाए।

मकतूब (पत्र) -7

मुआविया इबने अबी सुफयान के नामः---

तुम्हारा बे जोड़ नसीहतों का पुलंदा और बनाया संवारा हुआ ख़त मेरे पास आया, जिसे अपनी गुमराही की बिना पर तुम ने लिखा और अपनी बे अक़्ली (बिध्दिहीनता) की वजह से भेजा। यह एक ऐसे शख्स (ब्यक्ति) का ख़त है कि जिसे न रौशनी नसीब है कि उसे सीधी राह दिखाए, और न कोई रहबर है कि उसे सीधी राह पर ड़ाले। जिसे नफ़्सानी ख़्वाहिश ने पुकारका तो लब्बैक कह कर उठा, और गुमराही ने उस की रहबरी की तो वह उस के पीछे हो लिया और यावागोई करते हुए औल फ़ौल बकने लगा, और वह बे राह होते हुए भटक़ गया।

इस मकतूब का एक हिस्सा (भाग) यह है।

क्यों कि यह बैअत एक ही दफ़आ होती है, न फिर उस में नज़र सीनी की गुंजाइश होती है और न फिर से चुनाव हो सकता है। इस से मुन्हरिफ़ होने वाला निज़ामे इसलामी पर मोतरिज़ क़रार पाता है, और ग़ौरो फ़िक्र से काम लेने वाला मुनाफ़िक समझा जाता है।

मकतूब (पत्र) -8

जब ज़ुरैर इबने अबदुल्लाहे बजिल्ली को मुआविया की तरफ़ रवाना किया और उन्हें पलटने में ताख़ीर हुई तो उन्हें तहरीर फ़रमायाः---

मेरा ख़त मिलते ही मुआविया के दो टूक फ़ेसले पर आमादा करो, और उसे आख़िरी और क़तई राय का पाबन्द बनाओ और दो बातों में से किसी एक के इख़तियार करने पर मजबूर करो, कि घर से बे घर कर देने वाली जंग या रूसवा करने वाली सुल्ह। अगर वह जंग को इख़तियार करे तो तमाम तअल्लुक़ात और गुफ़्तो शुनीद खत्म कर दो, और अगर सुल्ह चाहे तो उस से बैअत ले लो। वस्सलाम।

मकतूब (पत्र) -9

मुआविया के नाम

हमारी क़ौम (कुरैश) ने हमारे नबी (स0) को क़त्ल करने और हमारी जड़ उख़ाड़ फ़ेंकने का इरादा किया, और हमारे लिये गमो अन्दोह के सरो सामान किये, और बुरे से बुरे बर्ताव हमारे साथ रवा रखे। हमें आराम व राहत से रोक दिया और मुस्तक़िल तौर पर ख़ौफ़ो दहशत से दो चार कर दिया, और हमारे लिये जंग की आग भड़का दी। मगर अल्लाह ने हमारी हिम्मत बांधी कि हम पैगमबर (स0) की हिफ़ाज़त करें और उन के दामने हुर्मत पर आंच न आने दें।हमारे मोमिन उन सख्तियों की वजह से सवाब के उम्मीदवार थे, और कुरैश में से जो लोग ईमान लाए थे वह हम पर आने वाली मुसीबतों से कोसों दूर थे। इस अहदो पैमान की वजह से जो उन की हिफ़ाज़त करता था, या उस क़बीले की वजह से जो उन की हिफ़ाज़त के लिये उठ खड़ा होता था, लिहाज़ा वह क़त्ल से महफ़ूज़ थे। और रिसालते मआब (स0) का यह तरीक़ा था कि जब जंग के शोले भड़कते थे और लोगों के कदम पीछे हटने लगते थे तो पैगमबर (स0) अपने अहलेबैत को आगे बढ़ा देते थे और यूं उन्हें सीना सपर बना कर असहाब को नेज़ा न शमशीर की मार से बचा लेते थे। चुनांचे उबैदा इबने हारिस बद्र में हमज़ा उहद में और जअफ़र जंग मूता में शहीद हो गए। एक और शख्स ने भी, कि अगर मैं चाहूं तो उस का नाम ले सकता हूं, उन्हीं लोगों की तरह शहीद होना चाहा। लेकिन उन की उम्रें जल्द पुरी हो गईं और उस की मौत पीछे जा पड़ी। इस ज़मानए कज रफ़्तार पर हैरत होती है कि मेरे साथ ऐसों का नाम लिया जाता है जिन्हों ने मैदाने सई में मेरी सी तेज़गामी कभी नहीं दिखाई और न उन के मेरे ऐसे देरीना इसलामी ख़िदमात हैं। ऐसे ख़िदमात कि जिन की मानिन्द कोई मिसाल पेश नहीं कर सकता। मगर यह कि कोई मुद्दई ऐसी चीदज़ का दअवा कर बैठे कि जिसे मैं नहीं जानता हूं और मैं नहीं समझता कि अल्लाह उसे जानता होगा (यअनी कुछ हो तो वह जाने) बहर हाल अल्लाह तआला का शुक्र है।

ऐ मुआविया तुम्हारा यह मुतालबा जो है कि मैं उसमान के क़ातिलों को तुम्हारे हवाले कर दूं तो मैं ने इस के हर पहलू पर ग़ौरो फिक्र किया और इस नतीजे पर पहुंचा कि, उन्हें तुम्हारे या तुम्हारे अलावा किसी और के हवाले करना मेरे इख़तियार से बाहर है. और मेरी जान की क़सम। अगर तुम अपनी गुमराही और इन्तिशार पसन्दी से बाज़ न आए तो बहुत जल्द ही उन्हें पहचान लोगे वह खुद तुम्हें ढूंढ़ते हुए आयेंगे और तुम्हें जंगलों, दरियाओं, पहाड़ों और मैदानों में उन के ढ़ूंढ़ने की ज़हमत न देंगे। मगर यह एक ऐसा मतलब होगा जिसका हुसूल तुम्हारे लिये नागवारी का बाइस होगा और वह आने वाले ऐसे होंगे जिन की मुलाक़ात तुम्हें खुश न कर सकेगी। सलाम उस पर जो सलाम के लायक हो।

जब रसूलुल्लाह (स0) दअवते तौहीद पर मामूर हुए तो कुफ़्रो इस्या की ताकतें एलाने हक़ की राह रोकने के लिये उठ खड़ी हुईं, और क़बाउले कुरैश जब्रो तशद्दुद से उस आवाज़ को दबाने के दरपय हो गए। उन मुनकिरीन के दिलों में अपने खुद साख्ता मअबूदों की महब्बत इस क़दर रासिख़ हो चुकी थी कि उन के खिलाफ़ एक लफ़्ज़ भी सुनने् को तैयार न थे। उन के सामने एक खुदा का नज़रिया पेश करना ही उन के जज़बात को मुशतइल करने के लिये काफ़ी था चे जाय कि उन्हों ने अपने बुतों के मुतअल्लिक ऐसे कलिमात सुने उन्हें एक संगे बे शुऊर से जियादा अहम्मियत न देते थे। जब इस तरह उन्हें अपने उसूलो अक़ाउद ख़तरे में नज़र आए तो वह पैगमबर (स0) की अज़ीयत पर कमर बस्ता हो गए और अपने तर्कश के हर तीर को आज़माने के लिये मैदान में उतर आए और इस तरह ईज़ा रसानी से वसायल काम में लाए कि आप को घर से बाहर क़दम निकालना मुश्किल हो गया। इस दौर में जो गिन्ती के चन्द अफ़राद ईमान लाये थे, उन्हें भी मुसलसल व पैहम आज़माइशों से दो चार होना पड़ा। चुनांचे उन परस्ताराने तौहीद को जल्ती हुई ज़मीन पर धूप में लिटा दिया जाता और पत्थरों और कोड़ों से इतना मारा जाता कि उन के बदन लहू लहान हो जाते। जब कुरैश के मज़ालिम इस हद तक बढ़ गए तो पैगमबर (स0) ने बेसत के पांचवे साल उन्हें मक्का छोड़ कर हबशा की तरफ़ हिजरत कर जाने की इजाज़त दी। कुरैश ने यहां भी उन का पीछा किया मगर हबशा के फ़रमां रवा ने उन्हें उन के हवाले करने से इन्कार कर दिया, और अपनी अदल गुस्तरी व इंसाफ पर्वरी से उन पर कोई आंच न आने दी। इधर पैगमबर (स0) की तबलिग़ बराबर जारी थी और हक़ की कोशीश व तासीर बराबर अपना काम कर रही थी और लोग उसलाम की तअलीम और आप की शख्सीयत से मुतअस्सिर हो कर आप के दामन से वाबस्ता होते जा रहे थे। जिस से कुरैश अंगारों पर लोटते अन्दर ही अन्दर पेचो ताब खाते और इस बढ़ती हुई तासीर व नुफ़ूज़ को रोकने की कोशिश करते मगर जब उन के किये कुछ भी न हो सका तो यह तय किया कि बनी हाशिम व बनी अब्दुल मत्तलिब से तमाम तअल्लुक़ात क़तअ कर लिये जायें। न उन से मेल जोल रखा जाय न उन से लेन देन किया जाय। ताकि वह तंग आकर पैगमबर (स0) की हिमायत सेदस्त बर्दार हो जायें और फिर वह जैसा चाहें उन के साथ बर्ताव करेंष चुनांचे उन में बाहमी मुआहदा हुआ और इस सिलसिले में एक दस्तावेज़ लिख कर महफ़ूज़ कर दी गई। इस मुआहदे के बाद अगरचे ज़मीन वही थी और ज़मीन पर बसने वाले भी वही थे मगर बनी हाशिम के लिये दरो दीवार से अजनबीयत बरसने लगी। जानी पहचानी हुई सूरतें यूं नज़र आने लगीं जैसे कभी शनासाई थी ही नहीं। सब ने रुख मोड़ लिये और मेल मुलाक़ात और रहो रस्म बन्दी कर दी। इन हालात में भी यह अन्देशा था कि कहीं पैगमबर (स0) पर अचानक हमला न हो जाए। इस लिये शहर से बाहर पहाड़ की एक तंग घाटी में कि जिसे शेबे अबू तालिब कहा जाता है, पनाह लेने पर मजबूर हुए। इस मौक़े पर बनी हाशिम में से जो अभी तक ईमान न लाये थे, वह खान्दानी इत्तिहाद कि बिना पर आप के दुख दर्द में शराक होते और आड़े वक्त पर सिना सिपर हो कर ख़ड़े हो जाते और जो ईमान ला चुके थे जैसे हज़रत हमज़ा, व हज़रत अबू तालिब वह अपना फ़रीज़ए ईमानी समझ कर आप की हिफ़ाज़त में सर गर्मे अमल रहते। खुसूसन हज़रत अबू तालिब ने अपना सुकून व आराम सब छोड़ रखा था। उन के दीन पैगमबर को तस्क़ीन देने रातें पहरा देने और पैगमबर (स0) की ख्वाबगाह बदलवाने में गुज़रती थीं। इस तरह कि जिस बिस्तर पर एक रात पैगमबर (स0) आराम फ़रमाते दूसरी रात उस बिस्तर पर अली (अ0 स0) को सुला देते कि अगर कोई हमला करे तो आंहज़रत के बजाय़ अली काम आ जायें।

यह दौर बनी हाशिम के लिये इन्तिहाई मसायब व आलाम का दौर था। हालात यह थी कि ज़रुरियाते जिन्दगी ना पैद. और मईशत के तमाम दरवाज़े बन्द हो चुके थे। दरख्तों के पत्तों से पेट भर लिये तो भर लिये वर्ना फ़ाक़ों में पड़े रहे। जब इस तरह तीस बरस क़ैदो बन्द की सख्तियां झेलते गुज़र गए तो ज़ुबैर इबने अबी उमैया, हिशाम इबने अमर, मुतइम इबने अदी, अबुल बख़्तरी और जमआ इबने असवद ने चाहा कि इस मुआहदे को तोड़ दे। चुनांचे अक़ाबिरे कुरैश खानए कअबा के मशविरे के लिये जमअ हुए। अभी कुछ तय न कर पाये थे कि हज़रत अबू तालिब भी शेब से निकल कर उन के मजमे में पहुंच गए और उन से कहा कि मेरे भतीजे मोहम्मद (स0) इबने अब्दुल्लाह ने मुझे बताया कि जिस कागज़ पर तुम ने मुआहेदा तहरीर किया था उसे दीमक ने चाट लिया है और अब उस पर अल्लाह के नाम के सिवा कुछ नहीं रहा। लिहाज़ा तुम दस्तावेज़ मंगवा कर देखो। अगर उन्हों ने सच कहा है तो तुम्हें उन की दुशमनी से दस्तबर्दार हो जाना चाहिये और अगर ग़लत कहा है तो मैं उन्हें तुम्हारे हवाले करने को तैयार हूं। चुनांचे उस दस्तावेज़ को मंगवा कर देखा गया तो वाक़ई (बे इस्मेकल्लाहुम्मा) के अलावा कि जो दौरे जाहिलयत में सरनामे के तौर पर लिखा जाता था, तमाम तहरीर दीमक की नज़्र हो चुकी थी। यह देख कर मुतइम इबने अदी ने उस तहरीर को पारा पारा कर दिया, और वह मुआहेदा तोड़ दिया गया। खुदा खुदा कर के बनी हाशिम को इस मज़लूमियत व बेकसी की ज़िन्दगी से नेजात मिली। लेकिन इस के बाद भी पैगमबर (स0) के साथ मुशरिक़ीन के रवैये में सरे मू फ़र्क़ न आया। बल्कि वह बुग़ज़ो इनाद में इस तरह खो गए कि उन की जान लेने की तदबीरें करने लगे जिस के नतीजे में हिजरत का वाक़िआ ज़हूर में आया। इस मौक़े पर अगर्चे हज़रत अबू तालिब जिन्दा न थे मगर अली इबने अबी तालिब (अ0 स0) ने पैगमबर (स0) के बिस्तर पर लेट कर उन की याद दिलों में ताज़ा कर दी क्यों कि यह उन्हीं का दिया हुआ दर्स था जिस से पैगमबर (स0) की हिफ़ाज़त का सरो सामान किया जाता था।

यह वाक़िआत अगरचे मुआविया से छिपे न थे मगर चूंकि उस के सामने असलाफ़ के कारनामों को रख कर उस की मुआनिदाना को झिंझोड़ना मक़सूद था इस लिये कुरैश व बनी अब्दे शम्स की उन ईज़ा रसानियों की तरफ़ से उसे तवज्जह दिलाई है कि वह अहदे नबवी के परस्ताराने हक़ और परस्ताराने बातिल की रविश को देखते हुए यह ग़ौर करे कि वह हक़ की राह पर चल रहा है या अपने असलाफ़ के नक्शे क़दम पर ग़ाम ज़न है।

मकतूब (पत्र) -10

मुआविया की तरफ़

तुम उस वक्त क्या करोगे जब दुनिया के यह लिबास जिन में लिपटे हुए हो तुम से उतर जायेंगे। यह दुनिया जो अपनी सज धज दिखाती और हज़ व क़ैफ़ (धज एवं स्वाद) से वर्गलाती है। जिस ने तुम्हें पुकारा तो तुम ने लब्बैक कही, उस ने तुम्हें खींचा तो तुम उस के पीछे हो लिये। और उस ने तुम्हें हुक्म दिया  तो तुम ने उसकी पैरवी की। वह वक्त दूर नहीं कि बताने वाला तुम्हें उन चीज़ों से आगाह करे कि जिन से कोई सिपर (ढ़ाल) तुम्हें बचा न सकेगी। लिहाज़ा इस दअवे से बाज़ आ जाओ। हिसाबो किताब व सरोसामान करो। और आने वाली मौत के लिये दामन गर्दान कर तैयार हो जाओष और गुमराहों की बातों पर कान न धरो। अगर तुम ने ऐसा न किया तो फिर मैं तुम्हारी ग़फ़लतों पर तुम्हें मुतनव्बेह करुंगा। तुम ऐशे इशरत में पड़े हो। शैतान ने तुम में अपनी गिरफ़्त मज़बूत कर ली है। वह तुम्हारे बारे में अपनी आर्जुयें पूरी कर चुका है। और तुम्हारे अन्दर रुह की तरह (आत्मा समान) सरायत (प्रवेश) कर गया है और खून (रक्त) की तरह (रगो पय में) दौड़ रहा है।

ऐ मुआविया। भला तुम लोग (उमैया की औलाद) कब रईयत (प्रजा) पर हुकमरानी (शासन) की सलाहियत (योग्यता) रखते थे, और कब उम्मत के उमूर के वाली व सरपरस्त थे। बग़ैर किसी पेश क़दमी और बग़ैर किसी बलन्द इज्ज़तो मंज़िलत के हमदेरिना बद बख़्तियों के घर कर लेने से अल्लाह की पनांह मांगते हैं। मैं इस चीज़ पर तुम्हें मुतनब्बेह किये देता हूं कि तुम हमेशा आर्ज़ूओं (कामनाओं) के फ़रेब पर फ़रेब (धोके पर धोका) खाते हो, और तुम्हारा ज़ाहिर (प्रत्यक्ष) बातिन (परोक्ष) से जुदा (पृथक) रहता है।

तुम ने मुझे जंग (युध्द) के लिये ललकारा है, तो ऐसा करो कि लोगों को एक तरफ़ कर दो और खुद (मेरे मुक़ाबिले) में बाहर निकल जाओ। दोनो फ़रीक़ (पक्षों) को क़त्लो खून से मुआप़ करो ताकि पता चल जाए कि जिस के दिल पर जंग की तहें चढ़ी हुई और आंखों पर पट्टी पड़ा हुआ है। में (कोई और नहीं) वही अबुल हसन हूं जिस ने तुम्हारे नान, तुम्हारे मामू, और तुम्हारे भाई के परखुच्चे उड़ा बद्र के दिन मारा था। वही तलवार अभी भी मेरे पास है और उसी गुर्दे के साथ अब भी दुशमन का मुक़ाबिला करता हूं। न मैं ने कोई दीन बदला है, न कोई नया नबी ख़ड़ा किया है, और मैं बिला शुब्हा उसी शाहराह पर हूं, जिसे तुम ने अपने इख़तियार से छोड़ रखा था. और फिर ब मजबूरी उस में दाखिल हुए। और तुम ऐसा ज़ाहिर करते हो कि तुम खूने उसमान का बदला लेने उठे हो। हालां कि तुम्हें अच्छी तरह मअलूम है कि उन का खून किस के सर है। अगर वाक़ई बदला ही लेना मंज़ूर है तो उन्हीं से लो। अब तो वह (आने वाला) मंज़र (दृश्य) मेरी आंखों में फिर रहा है कि जब जंग तुम्हें दांतों से काट रही होगी, और तुम इस तरह बिलबिलाते होगे जिस तरह भारी बोझ से ऊंट बिलबिलाते हैं। और तुम्हारी जमाअत ताबड़ तोड़ मार, सर पर मंडलाने वाली क़ज़ा, और कुश्तों के पुश्ते लग जाने से घबरा कर मुझे किताबे खुदा की तरफ़ दअवत दे रही होगी।हालां कि वह ऐसे लोग हैं जो क़ाफ़िर और हक़ के मुनकिर हैं या बैअत के बाद उसे तोड़ देने वाले है।

अतबा इबने रबीआ, वलीद इबने अतबा, हंज़ला इबने अबी सुफ़यान।

अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम की यह पेशीन गोई जंगे सिफ़्फ़ीन के बारे में है। जिस में मुख़्तसर से लफ़्ज़ों में उस का पूरा मंज़र खींच दिया है। चुनांचे एक तरफ़ मुआविया इराक़ियों के हमले से हवास बाख़्ता हो कर भागने की सोच रहा था और दूसरी तरफ़ उस की फ़ौज़ मौत री पैहम यूरिश से घबरा कर चिल्ला रही थी और आख़िरे कार जब बचाव की कोई सूरत नज़र न आई तो कुरआन नेज़ों पर उठा कर सुल्ह का शोर मचा दिया और इस हिले से बचे खुचे लोगों ने अपनी जीन बचाई।

इस पेशीन गोई को क़ियामत व तख़मीन वाक़िआत से अख़जे नताइज का नतीजा नहीं क़रार दिया जा सकता और न इन जुज़ई तफ़सीलात का फ़रासत व दूर रस बसीरत में एहाता किया जा सकता है, बल्कि इन पर से वह पर्दा उठा सकता है जिस का ज़रीअए इत्तिलाअ पाग़मबर (स0) की ज़बाने वहइ तर्जुमान हो या इल्क़ाये रब्बानी।