मकतूब (पत्र) -21

ज़ियाद इबने अबीह के नामः--

मियाना रवी (बीच का रास्ता) इख़तियार करते हुए फ़ुज़ूल ख़चा से बाज़ आओ। आज के दीन को भूल न जाओ। सिर्फ़ ज़रुरत भर के लिये माल रेक कर बाक़ी मोहताजी के दीन के लिये आगे बढ़ाओ।

क्या तुम यह आस लगाए बैठे हो कि अल्लाह तुम्हें इज़्ज़ो इंकिसारी (विनीत एवं विनय) करने वालों का उज्र (पुण्य) देगा। हालां कि तुम उस के नज़दीक (उसकी नज़र में) मुतक़ब्बिरों (अहंकारियों) में से हो, और यह तमअ (लालच) रखते हो कि ख़ैरात (दान) करने वालों का सवाब (पुण्य) तुम्हारे लिये क़रार देगा।हालां कि तुम इशरत सामानियों (भोग विलास) में लोट रहे हो और बेकसों और बेवाओं को महरुम (वंचित) कर रखा है। इंसान अपने ही किये की जज़ा पाता है और जो आगे भेज चुका है वही आगे बढ़ कर पायेगा। वस्सलाम।

मकतूब (पत्र) -22

अब्दुल्लाह इबने अब्बास के नाम (अब्दुल्लाह इबने अब्बास कहा करते थे जितना फ़ायदा मैं ने इस कलाम से हासिल किया है इतना पैगमबर (स0) के कलाम के बाद किसी कलाम से हासिल नहीं किया।

इंसान को कभी ऐसी चीज़ का पा लेना खुश करता है जो उस के हाथों से जाने वाली होती ही नहीं, और कभी ऐसी चीज़ का हाथ से निकल जाना उसे ग़मग़ीन (शोकग्रस्त) कर देता है जो उसे हासिल होने वाली होती ही नहीं। यह खुशी (हर्ष) और ग़म (शोक) बेकार (ब्यर्थ) है. तुम्हारी खुशी (प्रसत्रता) सिर्फ़ आख़िरत (परलोक) की हासिल की हुई चीज़ों पर होना चाहिये। और जो चीज़ दुनिया से पा लो, उस पर ज़ियादा खुश न हो। और जो चीज़ उस से जाती रहे उस पर बेक़रार (ब्याकुल) हो कतर अफ़्सोस करने में लगो बल्कि तुम्हें मौत के बाद पेश आने वाले हालात की तरफ़ अपनी तवज्जह मोड़ना चाहिये।

वसीयत-23

जब इबने मुल्ज़िम ने आप के सरे अक़्दस पर ज़र्ब (चोंट) लगाई तो इंतिक़ाल से कुछ पहले आप ने बतौर वसीयत इर्शाद फ़रमाया।

तुम लोगों से मेरी वसीयत है कि किसी को अल्लाह का शरीक न बनाना, और मोहम्मद सल्लल्साहो अलैहे व आलेही वसल्लम की सुत्रत को ज़ाए व बर्बाद न करना, इन दोनों सुतूनों (स्तम्भों) को क़ायम (स्थापित) किये रहना। और उन दोनों चिरागों को रौसन रखना। बस। फिर बुराइयों ने तुम्हारा पीछा छोड़ दिया। मैं कल तुम्हारा साथी था और ाज तुम्हारे लिये (सरापा) इबरत हूं, और कल को तुम्हारा साथ छोड़ दूंगा। अगर मैं ज़िन्दा रहा तो मुजे अपने खून का इख़तियार होगा, और अगर मैं मर जाऊं तो मेरी मौत वअदा गाह है। अगर मुआफ़ (क्षमा) कर दूं तो यह मेरे लिये रिज़ाए इलाही का बाइस है, और वह तुम्हारे लिये भी नेकी होगी, क्या तुम नहीं चाहते कि अल्लाह तुम्हें बख्श दे। खुदा की क़सम। यह मौत का नागहानी हादिसा ऐसा नहीं है कि मैं उसे नापसन्द जानता हूं। मेरी मिसाल बस उस शख्स की सी है जो रात बर पानी की तलाश में चले और सुब्ह होते चश्मे पर पहुंच जाए, और उस ढ़ूंढने वाले की मानिन्द (समान) हूं जो मक़्सद (उद्देश्य) को पाले, और जो अल्लाह के यहां है वही नेकू कारों के लिये बेहतर है।

सैयिद रज़ी कहते हैं कि इस क़लाम का कुछ हिस्सा खुतबात में गुज़र चुका है मगर यहां कुछ इज़ाफ़ा था जिस की वजह से दो बारा दर्ज करना ज़रुरी हुआ।

वसीयत-24

हज़रत की वसीयत इस बात के मुतअल्लिक कि आप के अमवाल (मालों) में क्या अमल दर आमद होगा--- इसे सिफ़्फ़ीन से पलटने के बाद तहरीर फ़रमायाः

यह वह है जो खुदा के बन्दे अमीरूल मोमिनीन अली इब्ने अबी तालिब (अ0 स0) ने अपने अमवाल (औक़ाफ़) के बारे में हुक्म दिया है। मह्ज़ अल्लाह की रिज़ा जूई के लिये ताकि वह उस की वजह से मुझे जन्नत में दाखिल करे और अम्नो आसाइश (शान्ति व आराम) अता फ़रमाए।

(इस वसीयत का एक हिस्सा यह है)

हसन इब्ने अली (अ0 स0) उस के मुतवल्ली होंगे, जो इस माल से मुनासिब तौर पर (उचित रूप से) रोज़ी (जीविका) लेंगे, और उमूरे ख़ैर (अच्छे व शुभ कायों) में सर्फ़ (खर्च) करेंगे।  अगर हसन (अ0 स0) को कुछ हो जाए और हुसैन (अ0 स0) ज़िन्दा हों तो वह उन के बाद संभालेंगे और उनही की राह पर चलायेंगे। अली के औक़ाफ़ में जितना हिस्सा फ़र्ज़न्दाने अली (अली के अन्य पुत्रों) का है उतना ही औलादे फ़ातिमा का है। बेशक़, मैं ने सिर्फ़ अल्लाह की रिज़ामन्दी, रसूल के तक़र्रूब (निकटना) उन की इज्ज़तो हुर्मत (सम्मान एवं धर्म निष्टा) के एज़ाज़ (सम्मान) और उन की क़राबत (क़रीबी रिशते) के ओह्तिराम (सम्मान) के पेशेनज़र (दृष्टिगत) की है, और जो इस जायदाद का मुतवल्ली (संरक्षक) हो उस पर यह पाबन्दी आइद (प्रतिबंध लागू) होगी कि वह माल को उस की अस्ली हालत पर रहने दे और उस के फलों को उन मसारिफ़ (ख़र्चों) में लाए और यह कि वह उन देहातों के नखलिस्तानों की मई पौद को फ़रोख्त (विक्रय) न करे यहां तक कि उन देहातों की ज़मीन का उन दरख्तों के जम जाने से आलम ही दूसरा हो जाए, और वह कनीज़ों (दासियां) जो मेरे तसर्रूफ़ (उपभोग) में हैं उन में से जिस की गोद में बच्चा है या पेट में है तो वह बच्चे के हक़ में रोक ली जायेगी और वह ज़िन्दा हो, तो भी वह आज़ाद होगी। फिर अगर बच्चा मर भी जाए और वह ज़िन्दा हो, तो भी वह आज़ाद होगी। उस से गुलामी (दासता) छंट गई है और आज़ादी (स्वतंत्रता) उसे हासिल हो चुकी है।

अमीरूल मोमिनीन (अ0 स0) की ज़िन्दगी एक मज़दूर और काश्तकार की ज़िन्दगी थी। चुनांचे आप दूसरे के खेतों में काम करते, और बंजर और उफतादा (खाली पड़ी हुई) ज़मीनों में आब रसानी के वसाइल (सिंचाई के साधन) मुहैया कर के उन्हें आबाद करते और काश्त के काबिल (कृषि योग्य) बना कर उन में बाग़ात लगाते, और चूंकि ये ज़मीन आप की आबाद करदा होती थी इस लिये आप की मिल्कियत (स्वामित्व) में दाखिल थीं। मगर आप ने कभी माल पर नज़र न की और उन ज़मीनों को वक्फ़ क़रार दे कर अपने हुकूक़ मिल्कियत (स्वामित्व अधिकार) को उठा लिया। अलबत्ता क़राबते पैग़मबर (स0) का लिहज़ करते हुए उन औक़ाफ़ की तौलियत (सेरक्षण) यके बाद दीगरी इमाम हसन (अ0 स0) और इमाम हुसैन (अ0 स0) के सिपूर्द की। लेकिन उन के हुकूक़ में कोई इमतियाज़ (विभेद) गवारा नहीं किया। बल्कि दूसरी औलाद की तरह उन्हें भी सिर्फ़ इतना हक़ (अधिकार) दिया कि वह गुज़ारे भर का ले सकते हैं। और बकिया (शेष) आम मुस्लिमीन के मफ़ाद (हित) और उमूरे खैर (शुभ कायों) में सर्फ़ (वयय) करने का हुक्म दिया। चुनांचे इब्ने अबिल हदीद तहरीर करते हैः...

सब को मअलूम है कि अमीरूल मोमिनिन (अ0 स0) ने मदीने और यंबोअ और सुवैअह में बहुत से चश्मे खोद कर निकाले और बहुत सी उफ़्तादा (पड़ी हुई) ज़मीनों को आबाद तिया, और फिर उन से अपना क़ब्ज़ा उठा लिया और मुसलमानों के लिये वक्फ़ कर दिया, और वह इस हालत में दुनिया से उठे कि कोई चीज़ आप की मिल्कियत में न थी।

मकतूब (पत्र)-25

(जिन कारिन्दों को ज़कात व सदक़ात वसूल करने पर मुक़र्रर करते थे, उन के लिये यह हिदायत नामा तहरीर फ़माते थे। हम ने उस के चन्द टुकड़े यहां पर इस लिये दर्ज किये हैं कि मअलूम हो जाए कि आप हमेशा हक़ के सुतून (स्तम्भ) खड़े करते थे और और हर छोटे बड़े और पोशीदा व ज़ाहिर उमूर (प्रत्यक्ष व परोक्ष विषयो) में अद्ल (न्याय) के नमुने क़ायम करते थे।

अल्लाह वह्दहू ला शरीक़ का खौफ़ (भय) दिल में लिये हुए चल खड़े हो, और देखो किसी मुसलमान को खौफ़ज़दा (भयभीत) न करना, और उस (की इम्लाक़) पर इस तरह से न गुज़रना कि उसे नागवार गुज़रे, और जितना उस के माल में अल्लाह का हक़ निकलता हो उस से ज़यद (अधिक) न लेना। जब किसी क़बीले की तरफ़ जाना तो लोगों के घरों में घुसने के बजाय पहले उन के कुंओं पर जा कर उतरना। फिर सुकून और वक़ार के साथ उन की तरफ़ बढ़ना। यहां तक कि जब उन में जा कर खड़े हो जाओ, तो उन पर सलाम करना और आदाब व तस्लीम में कोई कसर उठा न रखना। इस के बाद उन से कहना कि ऐ अल्लाह के बन्दों मुझे अल्लाह के वली और उस के खलीफ़ ने तुमहारे पास भेजा है कि अगर तुम्हारे माल में अल्लाह का कोई वाजिबुल अदा हक़ है कि जिसे अल्लाह के वली तक पहुंचाओ ? अगर कोई कहने वाला कहे कि नहीं, तो फिर उस से दोहरा कर न पूछना, और अगर कोई हां कहने वाला हां कहे, तो उसे डराए धम्काए चा उस पर सख्ती व तशद्दुद किये बगैर उस के साथ हो लेना और जो सोना या चांदी (दिर्हम व दिनार) वह दे वह ले लेना। और अगर उस के पास गाय, बक़री या ऊंट हों तो उन के गोल में उस की इजाज़त के बग़ैर दाखिल न होना, क्यों कि उन में ज़ियादा हिस्सा तो उसी का है। और जब (इजाज़त के बाद) उन तक जाना तो यह अन्दाज़ इख़तियार न करना कि जैसे तुम्हें उस पर पुरा क़ाबू है और तुम्हें उस पर तशद्दुद का हक़ हासिल है। देखो न किसी जानवर को भड़काना, न ड़राना और न उस के बारे में अपने ग़लत रवैये से मालिक को रंजीदा करना। जितना माल हो उस के दो हिस्से कर देना, और मालिक को यह इखतियार देना कि वह जो सा हिस्सा चाहे पसन्द कर ले, और जब वह कोई सा हिस्सा मुन्तख़ब कर ले तो उस के इन्तिखाब से तअर्रूज़ न करना। फिर बक़िया हिस्से के दो हिस्से कर देना, और मालिक को इख़तियार देना कि वह जो चाहे ले ले, और जब वह एक हिस्सा मुन्तखब कर ले तो उस के इन्तिखाब पर मोतरिज़ न होना, यूं ही, ऐसा ही करते रहना, यहां तक कि बस उतना रह जाए जितने से उस माल में जो अल्लाह का हक़ है पूरा हो जाए तो बस उसे तुम अपने क़ब्ज़े में कर लेना, और इस पर भी अगर वह पहले इन्तिख़ाब को मुस्तरद कर के दोबारा इन्तिख़ाब करना चाहे तो उसे इस का मौक़ा दो, और दोनों हिस्सों को मिला कर फिर वही करो दिस तरह पहले किया था। यहां तक कि उस के माल से अल्लाह का हक़ ले लो। हां देखो कोई बूढ़ा बिलकुल फूंस ऊंट जिस की कमर शिकस्ता या पैर टूटा हुआ हो, या बीमारी का मारा हुआ हो या ऐबदार हो, न लेना। और उन्हें किसी ऐसे शख्स की अमानत में सौंपना जिस की दींदारी पर तुम को एतिमाद (भरोसा) हो कि जो मुसलमानों के माल की निगह दाश्त करता हुआ उन के अमीर तक पहुंचा दे ताकि वह उस माल को मुस्लमानों में बांट दे। किसी ऐसे ही शख्स के सिपुर्द करना जो खौरख्वाह, खुदा तर्स, अमानत दार और निगरां हो। कि न तो उन पर सख्ती करे, और न दौड़ा दौड़ा कर उन्हें लाग़र व ख़स्ता करे, न उन्हें थका मारे और न तअब व मशक्कत में ड़ाले। फिर जो कुछ तुम्हारे पास जमअ हो उसे जल्द से जल्द हमारी तरफ़ भेजते रहना ताकि हम जहा दहा अल्लाह का हुक्म है उसे काम में लायें। जब तुम्हारा अमीन इस माल को अपनी तहवील में ले ले तो उसे ताकीद तरना कि वह ऊंटनी और उस के दूध पीते बच्चे को अलग अलग न रखे और न उस का सारा का सारा दूध दूह लिया करे कि बच्चे के लिये ज़रर रसानी (क्षति पहुंचाने) का बाइस (कारण) बन जाए। और उस पर सवारी कर के उसे हल्कान न कर ड़ाले। उस में और उस के साथ की दूसरी उंटनियों में, सवारी करने और दुहने में इन्साफ़ व मुसावात (न्याय एवं समानता) से काम ले। थके मांदे ऊंट को सुस्ताने का मौक़ा दे, और जिस के खुर घिस गए हो या पैर लंग करने लगे हों उसे आहिस्तगी और नर्मी से ले चले, और उन की गुज़रगाहों में जो तालाब पड़े वहां उन्हें पानी पिलाने के लिये उतारे और ज़मीन की हरियाली से उन का रूख मोड़ कर (बे आबो गियाह) रास्तों पर न ले चले। और वक्तन फ़वक्तन उन्हें राहत पहुंचाता रहे और जहां थोड़ा बहुत पीनी या घास सब्ज़ा हो उन्हें कुछ देर के लिये मोहलत दे ताकि जब वह हमारे पास पहुंचें तो वह बहुक्मे खुदा मोटे ताज़े हों और उन की हद्दियों का गूदा बढ़ चुका हो, वह थके मांदे और ख़स्ता हाल न हों, ताकि हम अल्लाह की किताब और रसूलुल्लाह (स0) की सुत्रत के मुताबिक उन्हें तक्सीम करें। बेशक़ यह तुम्हारे लिये बड़े सवाब का बाइस और मंज़िले हिदायत तक पहुंचने का ज़रीआ होगा। इंशाअल्लाह।

मकतूब (पत्र)- 26 

(एक कारिन्दे के नाम, कि जिसे ज़कात इकट्टा करने के लिये भेजा था, यह अह्द नाम तहरीर फ़रमाया )

मैं उन्हें हुक्म देता हूं कि वह अपने पोशीदा (गुप्त) इरादों और मख्फ़ी कामों (गोपनीय कायों) में अल्लाह से ड़रते रहें। जहां न अल्लाह के अलावा कोई गवाह होगा और न उस के मासिवा कोई निगरां है। और उन्हें हुक्म देता हूं कि वह ज़ाहिर (प्रत्यक्ष) में अल्लाह का कोई फ़रमान बजा न लायें कि उन के छिपे हुए अअमाल (कर्म) उस से मुख्तलिफ़ (भित्र) हों। और जिस शख्स का ज़ाहिर व बातिन और किर्दार व गुफ़्तार (कार्य व कथन) मुख्तलिफ़ (भित्र) न हो, उस ने अमानत दारी का फ़र्ज़ अंजाम दिया और अल्लाह की इबादत में खूलूस से काम लिया।

और मैं उन्हें हुक्म देता हूं कि वह लोगों को आजुर्दा (दुखी) न करें, और न उन्हें परीशान करें, और न उन से अपने उह्दे की बरतरी (पद की उच्चाता) की वजह से वे रूखी बर्ते क्यो कि वह दीनी भाई और ज़कात व सदक़ात के बर आमद कराने में मुईन व मददगार हैं।

यह मअलूम है कि इस ज़कात में तुम्हारा भी मुअय्यन (निश्चित) हिस्सा और जाना पहचाना हुआ हक़ है। और इस में बेचारे मिस्कीन और फाक़ा कश लोग भी तुहारे शरीक़ हैं। और हम तुम्हारा हक़ पुरा पुरा अदा करते हैं। तो तुम भी उन का हक़ पुरा पुरा अदा करो। नहीं तो याद रखो कि रोज़े क़ियामत तुम्हारे ही दुशमन सब से ज़ियादा होंगें। और वाय बदबख्ती उस शख्स की जिस के खिलाफ अल्लाह के हुज़ूर फ़रीक़ बन कर खड़े होने वाले फ़क़ीर, नादार, सायल, धुत्कारे हुऐ लोग, क़र्ज़दार और बे खर्च मुसाफिर हों। याद रखो कि जो शख्स अमानत को बे वक़अत समझते हुए उसे ठुकरे दे और खियानत (उपय्भोग) की चरागाहों में चरता फिरे और अपने दीन को उस आलूदगी से न बचाए, तो उस ने दुनिया में भी अपने को ज़िल्लतों और ख्वारियों में ड़ाला और आखिरत में भी रुसवा व ज़लील होगा। सब से बड़ी खियानत उम्मत की खियानत हैं। और सब से बड़ी फरेब कारी पेशवाए दीन को दग़ा देना है। वस्सलाम।

अह्द नामा (प्रतिज्ञा पत्र)- 27

(मोहम्मद इब्ने अबी बक्र के नाम जब कि उन्हें मिस्र की हुकूमत सिपुर्द की)

लोगों से तवाज़ो (आदर सत्कार) के साथ मिलना, उन से नर्मी का बर्ताव करना, कुशादा रूई से पेश आना और सब को एक नज़र से देखना, ताकि बड़े लोग तुम से नाहक़ तरफ़ दारी की उम्मीद न रखें और छोटे लोग तुम्हारे अद्लो इन्साफ़ (न्याय पालन) से उन बड़ों के मुक़ाबिले में ना उम्मीद न हों जायं। क्यों कि ऐ अल्लाह के बन्दो अल्लाह तुम्हारे छोटे, बड़े, खुले, ढके अअमाल (कर्मो) की तुम से बाज़पुर्स (पूछताछ) करेगा, और उस के बाद अगर वह अज़ाब करे, तो यह तुम्हारे खुद जुल्म का नतीजा है, और अगर वह मुआफ़ (क्षमा) कर दे तो यह उस के करम का तक़ाज़ा है।

खुदा के बन्दो  तुम्हें जानना चाहिये कि परहेज़गारों ने जाने वाली दुनिया और आने वाली आखिरत दोनों के फ़ायदे उठाए। वह दुनिया वालों के साथ उन का दुनिया में शरीक़ रहे मगर दुनियादार उन की आख़िरत में हिस्सा न ले सके। वह दुनिया में बेहतरीन तरीक़े पर रहे और अच्छे से अच्छा खाया और इस तरह वह उन तमाम चीज़ों से बहरा याब हुए जो ऐश पसन्द लोगों को हासिल थीं। और वह सब कुछ हासिल किया कि जो सर्कश व मुतकब्बिर (विद्रोही व अहंकारी) लोगों को हासिल था। फिर वह मंज़िले मक्सूद पर पहुंचाने वाले ज़ाद का सरो सामान और नफ्अ का सौदा कर के दुनिया से रवाना हुए। उन्हों ने दुनिया में रहते हुए तर्के दुनिया की लज़्ज़त चखी, और यक़ीन रखा कि वह कल अल्लाह के पड़ोस में होंगें जहां न उन का कोई आवाज़ ठुकराई जायेगी, न उन के हज़ व नसीब में कमी होगी। तो अल्लाह के बन्दो मौत और उस की आमद से डरो और उस के लिए सरो सामान फ़राहम करो। वह आयेगी और एक बडे हादिसे और अज़ीम सानिहे के साथ आयेगी। जिस में या तो भलाई ही भलाई होगी कि बुराई का उस में कभी गुज़र न होगा, या ऐसी बुराई होगी कि जिस में कभी भलाई का शाइबा न आयेगा। कौन है जो जन्नत के काम करने वाले से ज़ियादा जन्नत के करीब हो। और कौन है जो दोज़ख के काम करने वाले से जियादा दोज़ख के नज़दीक़ हो तुम वह शिकार हो जिस का मौत पीछा किये हुये है। अगर तुम ठहरे रहोगे जब भी तुम्हें गिरफ़्त में ले लेगी, और अगर उस से भागोगे जब भी वह तुम्हें पा लेगी। वह तो तुम्हारे साये से भी ज़िआदा तुम्हारे साथ है। मौत तुम्हारी पेशानी के बालों से जकड़ कर बांध दी गई है, औऱ दुनिया तुम्हारे अक़ब (पीछे) से तह की जा रही है। लिहाज़ा जहन्नम की उस आग से डरो जिस का गहराव दूर तक चला गया है, जिस की तपिश बे पनाह है और जिस का अज़ाब हमेशा नया और ताज़ा रहता है। वह ऐसा घर है जिस में रहमो करम का सवाल ही नहीं, न उस में कोई फ़र्याद सुनी जाती है और न कर्ब व अज़ीयत से छुटकारा मिलता है। अगर यह कर सको कि तुम अल्लाह का ज़ियादा से ज़ियादा खौफ़ भी रखो और उस से अच्छी तरह उम्मीद भी वाबस्ता रखो, तो इन दोनों बातों को अपने अन्दर जमअ कर लो। क्यों कि बन्दे को अपने पर्वरदिगार से उतनी ही उम्मीद भी होती है जितना कि उस डर होता है। और जो सब से ज़ियादा अल्लाह से उम्मीद रखता है वही सब से ज़ियादा उस से खाइफ़ (भयभीत) होता है।

ऐ मोहम्मद ्बने ्बी बकर, इस बात को जान लो कि मैं ने तुम्हें मिस्र वालों पर जो कि मेरी सब से बड़ी सिपाह है, हुकमरान बनाया है। अब तुम से मेरा मुतालबा यह है कि तुम अपने नफ्स की खिलाफ़ वर्ज़ी करना, और अपने दीन के लिये सीना सिपर रहना, अगरचे तुम्हें ज़माने में एक ही घड़ी का मौक़ा हासिल हो और मख्लूक़ात में से किसी को खुश करने के लिये अल्लाह को नाराज़ न करना, क्यों कि औरों का एवज़ तो अल्लाह से मिल सकता है मगर अल्लाह की जगह कोई नहीं ले सकरता। नमाज़ को उस के मुक़र्ररा वक्त (निर्धारित समय) पर अदा करना, और फुर्सत होने की वजह से क़ब्ल अज़ वक्त (समय से पहले) न पढ़ लेना, और न मशगूलियत (ब्यवस्तता) की वजह से उसे पीछे डाल देना। याद रखो कि तुम्हारा हर अमल नमाज़ के ताबे (अधीन) है।

इस हिदायत का एक हिस्सा (भाग) यह हैः---

हिदायत का इमाम और हलाक़त का पैशवा, पैगमबर (स0) का दोस्त और पैगमबर (स0) का दुशमन बराबर नहीं हो सकते। मुझ से रसुलुल्लाह (स0) ने फ़रमाया था कि मुझे अपनी उम्मत के बारे में न मोमिन से खटक़ा है और न मुशरिक से। क्यों कि मोमिन की अल्लाह उस के ईमान की वजह से (गुमराह करने से) हिफ़ाज़त करेगा, और मुशरिक को उस के शिर्क की वजह से ज़लील व ख़्वार करेगा, बल्कि मुझे तुम्हारे तुम्हारे लिये हर उस शख्स से अन्देशा है कि जो दिल से मुनाफ़िक़ और ज़बान से आलिम है। कहता वह है जिसे तुम अच्छा समझते हो और करता वह है जिसे तुम बुरा समझते हो।

मकतूब (पत्र) – 28.

मुआविया के नाम (यह मकतूब (पत्र) अमीरुल मोमिनीन (अ0 स0) के बेहतरीन (अति श्रेष्ठ) मकतूबात (पत्रों) में से है)।

तुम्हारा ख़त पहुंचा। तुम ने उस में यह ज़िक्र किया है कि अल्लाह ने मोहम्मद (स0) को अपने दीन के लिये मुन्तखब फ़रमाया, और ताईद व नुसरत (समर्थन एवं सहायता) करने वाले साथियों के ज़रीए उन को कुव्वत व तवानाई (शक्ति एवं सामथर्य) बख्शी। ज़माने ने तुम्हारे अजाइबात (विचित्रता) पर पर्दा ही डाले रखा था, जो यूं ज़ाहिर हो रहे हैं कि तुम हमें ही ख़बर दे रहे हो उन एह्सानात की जो हमीं पर हुए हैं। इस तरह तुम वैसे ठहरे जैसे हजर की तरफ़ खजूरें लाद कर ले जाने वाला। या अपने उस्ताद (गुरू) को तीर अन्दाज़ी के मुक़ाबिले की दअवत देने वाला। तुम ने यह ख़याल ज़ाहिर (विचार व्यक्त) किया है कि इसलाम में सब से अफ़्ज़ल (श्रेष्ठ) फ़लां और फ़ला (अमुक अमुक लोग) (अबूबक्र व उमर) हैं। यह तुम ने ऐसी बात कही है कि अगर सहीह हो तो तुम्हारा उस से कोई वासिता नहीं, और ग़लत हो तो उस से तुम्हारा कोई नुक़सान नहीं होगा। और भला कहां तुम और कौन रिआया भला आज़ाद कर्दा लोगों और उन के बेटों को यह हक़ कहा से पहुंचता है कि वह मुहाजिरीने अव्वलीन के दरमियान इमतियाज़ (विभेद) करने, उस के दरजे (श्रेणियां) ठहराने और उन के तबक़े (वर्ग) पहचनवाने बैठें ? कितना ना मुनासिब (अनुचित) है कि जुए के तीरों में नक्ली तीर आवाज़ देने गले और किसी मुआमले में वह फ़ैसला (निर्णय) करने बैठे जिस के खिलाफ़ खुद बहर हाल इस में फैसला होना है। ऐ शख्स तू अपने पैरों के लंग को देखते हुए अपनी हद पर ठहरता क्यों नही, और अपनी कोताह दस्ती को समझता क्यों नहीं, पीछे हट कर रूकता, वहीं जहां क़जा व क़दर का फै़सला तुझे पीछे हटा चुका है। आखिर तुझे किसी मग्लूब की शिकस्त (परास्त की पराजय) से और किसी फ़ातेह (विजयी) की कामरानी (विजय) से सरोकार ही क्या है। तुम्हें महसूस होना चाहिये कि तुम हैरत व सर गश्तगी में हाथ पांव मार रहे हो, जो मैं यह कहता हूं, तुम्हें कोई इत्तिला (सूचना) देना नहीं है, बल्कि अल्लाह की नेमतों का तज़किरा करना है, कि मुहाजिरीन व अन्सार (शरणर्थियों और सहयोगियों) का एक गुरोह खुदा की राह में शहिद हुआ, और सब के लिये फ़जीलत का दरजा है, मगर जब हम में से शहिद ने जामे शहादत पिया, तो उसे सैयिदुश्शुहदा कहा गया, और पैग़मबर (स0) ने सिर्फ उसे यह खुसूसियत बख्शी कि उस की नमाज़े जनाज़ा में सत्तर तक्बिरें कहीं। और क्या नहीं देखते कि बहुत लोगों के हाथ खुदा की राह में काटे गए, और हर एक के लिये एक हद तक फ़ज़ीलत है। मगर जब हमारे आदमी के लिये यही होआ जो औरों के साथ हो चुका था, तो उसे अत्तैयारो फिल जन्नह, (जन्नत में पर्वाज़ करने, उड़ने वाला) और जुल जेनाहैन (दो परों वाला) कहा गया। अगर खुदा वन्दे आलम ने खुद सताई (अपनी आप प्रशंसा) से रोका न होता तो बयान करने वाला अपने भी वह फ़ज़ाइल बयान करता कि मोमिनों के दिल जिस का एतिराफ़ करते हैं, और सुनने वालों के कान उन्हें अपने से अलग नहीं करना चाहते। ऐसों का ज़िक्र क्यों करो जिन का तीर निशानों से ख़ता करने वाला है। हम वह हैं जो बराहे रास्त (सीधे) अल्लाह से नेमतें ले कर पर्वान चढ़े हैं, और दूसरे  हमारे एह्सान पर्वरदा हैं। हम ने अपनी नस्लन बादा नस्लिन चली आने वाली इज्ज़त और तुम्हारे ख़ान्दान पर क़दीमी बर्तरी के बावजूद कोई ख़याल न किया, और तुम से मेल जोल रखा, और बराबर वालों की तरह रिशते दिये लिये। हालांकि तुम उस मंज़िलत पर न थे। और हो भी कैसे सकते हो? हम में असदुल्लाह और तुम असदुल अहलाफ़, हम में दो सरदारे जवानाने अहले जन्नत और तुम में जहन्नमी लड़के, हम में सरदारे ज़नाने आलमियान और तुम में हम्मालतुल हतब और ऐसी ही बहुत बातें जो हमारी बलन्दी और तुम्हारी पस्ती की आईनादार हैं।

चुनांचे हमारा ज़ुहूरे इस्लाम के बाद का दौर भी वह है जिस की शोहरत है, और जाहिलियत के दौर का भी हमारा इमतियाज़ नाक़बिले इन्कार हैं, और उस के बाद जो रह जाए वह अल्लाह की किताब जामे अल्फ़ाज़ में हमारे लिये बता देता है। इर्शादे इलाही है, क़राबत दार एक दूसरे के ज़ियादा इक़दार हैं। दूसरी जगह पर इर्शाद फ़रमाया है, इब्राहीम (अ0 स0) के ज़ियादा हक़दार वह लोग थे जो उन के पैरोकार थे और यह नबी और वह लोग जो इमान लाए हैं, और अल्लाह ईमान वालों का सरपरस्त है। तो हमें क़राबत की वजह से भी दूसरों पर फ़ौक़ियत हासिल है और इताअत की वजह से भी हमारा हक़ फ़ाइक़ है, और सक़ीफ़ा के दिन जब मुहाजिरीन ने रसूल (स0) की क़राबत को इस्तेद्लाल (तर्क) में पेश किया तो अन्सार के मुक़ाबिले में कामयाब हुए। तो उन की कामयाबी अगर क़राबत की वजह से थी, तो फिर यह ख़िलाफ़त हमारा हक़ है, न कि उन का, और अगर इस्तेह्क़ाक़ का कुछ और मेयार है तो अन्सार का दअवा अपने मक़ान पर बरक़रार रहता है। और तुम ने यह ख़याल ज़ाहिर किया है कि मैं ने सब खुलफ़ा पर हसद किया और उन के ख़िलाफ़ शोरिशें खड़ी कीं--- अगर ऐसा ही है तो इस से मैं ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है कि तुम से मअज़िरत करूं। बकौले शायरः...

यह ऐसी ख़ता है जिस से तुम पर हर्फ़ नहीं आता।

और तुम ने लिखा है कि मुझे बैअत के लिये यूं ख़ींच कर लाया जाता था जिस तरह नक़ेल पड़े ऊंट को खींचा जाता है.... तो ख़ालिक की हस्ती की कसम तुम उतरे तो बुराई करने पर थे, कि लगे तअरीफ़ करने, चाहा तो यह था कि मुझे रुसवा करो कि खुद ही रुसवा हो गए। भला मुसलमान आदमी के लिये इस में कौन सी ऐब की बात है कि वह ज़ुल्म हो, जब कि न वह अपने दीन में शक करता हो, न न उस का यकीन ड़ावांडोल हो। और मेरी इस दलील का तअल्लुक अगरचे दूसरों से है मगर जितना बयान यहां मुनासिब था, तुम से कर दिया।

फिर तुम ने मेरे और उसमान के मुआमले का ज़िक्र किया है, तो हां इस में तुम्हें हक़ पहुंचता है कि तुम्हें जवाब दिया जाए। क्यों कि तुम्हारी उन से क़राबत होती है। अच्छा तो फिर सच बताओ कि हम दोनों में उन के साथ ज़ियादा दुशमनी करने वाला, और उन के क़त्ल का सरो सामान करने वाला कौन था। वह कि जिस ने अपनी इमदाद की पेशकश की और उन्हों ने उसे बिठा दिया और रोक दिया, या वह कि जिस से उनेहों ने मदद चाही और वह टाल गया। और उन के लिये मौत के अस्बाब मुहैया किये, यहां तक कि उन के मुकद्दर की मौत ने उन्हें आ घेरा। हरगिज़ नहीं। खुदा की क़सम वह पहला ज़ियादा दुशमन हरग़िज़ क़रार नहीं पा सकता। अल्लाह उन लोगों को खूब जानता है जो जंग से दूसरों को रोकने वाले हैं और अपने भाई बन्दों से कहने वाले हैं कि आओ हमारी तरफ़ आओ, और खुद भी जंग के मौके पर बराए नाम ठहरते हैं। बेशक मैं उस चीज़ के लिये मअज़िरत करने को तैयार नहीं हूं कि मैं उन की बअज़ बिदअतों को ना पसन्द करता था। अगर मेरी यही खता है कि मैं उन्हें सहीह राह दिखाता था और हिदायत करता था तो अकसर नाकर्दा गुनाह मलामतों का निशाना बन जाया करते हैं, और कभी नसीहत करने वाले को बदगुमानी का मर्क़ज़ बन जाना पड़ता है। मैं ने तो जहां तक बन पड़ा यही चाहा कि इसलाहे हाल हो जाए। और मुझे तौफ़ीक़ हासिल होना है तो अल्लाह से, उसी पर मेरा भरोसा है और उसी से लौ लगाता हूं।

तुम ने मुझे लिखा है, कि मेरे और मेरे साथियों के लिये तुम्हारे पास बस तलवार है। यह कह कर तो तुम रोतों को हंसाने लगे। भला यह तो बताओ कि तुम ने औलादे मुत्तलिब को कब दुशमन से पीठ फिराते हुए पाया, और कब तलवारों से ख़ौफ़ ज़दा होते देखा। अगर यही इरादा है तो बक़ौले शायरः---

थोड़ी देर दम लो कि हमल मैदाने जंग में पहुंच लें। मौत वारिद होने के वक्त कितनी हसीन व दिल कश होती है।

अनक़रीब जिसे तुम तलब कर रहे हो वह खुद तुम्हारी तलाश में निकल खड़ा होगा, और जिसे दूर समझ रहे हो वह क़रीब पहुंचेगा। मैं तुम्हारी तरफ़ मुहाजिरीन व अन्सार और अच्छे तरीके से उन के नक्शे क़दम पर चलने वाले ताबेईन का लशकरे जर्रार ले कर अनक़रीब उड़ता हुआ आ रहा हूं। ऐसे लशकर कि जिस में बे पनाह हुजूम और फ़ैलै हुआ गर्दो गुबार होगा। वह मौत के क़फ़न पहने हुए होंगे। हर मुलाक़ात से ज़ियादा उन्हें लक़ाए पर्वरदिगार महबूब होगी। उन के साथ शुहदाए बद्र की औलाद और हाशिमी तलवारें होंगी कि जिन की तेज़ धार की काट तुम अपने मामूं, भाई, नाना, और कुंबे वालों में देख चुके हो, वह ज़ालिमों से अब भी दूर नहीं है।

अमीरुल मोमिनीन का यह मकतूब (पत्र) मुआविया के उस ख़त के जवाब में है जो उस ने अबू उमामए वाहिली के हाथ हज़रत के पास कूफ़े भेजा था और उस में बअज़ उन बातों का भी जवाब है जो उस ने अबू मुस्लिमे खौलानी के हाथ भेजवाए हुए खत में तहरीर की थीं।

 मुआविया ने अबू उमामा के खत में बेसते पैगमबर (स0) और उन के वहई रिसालत पर फाइज़ होने का तज़किरा कुछ इस अन्दाज़ में किया कि गोया यह चीज़ें अमीरुल मोमिनीन के लिये अंजानी और अन समझी हैं, और आप उस के बताने और समझाने को मोहताज हैं। यह ऐसा ही है जेसे कोई अजनबी घर वालों का नक्शा बताने बैठे और उन की देखी भाली हुई चीज़ों से आगाह करने लगे। चुनांचे हज़रत ने उस की रविश पर तअज्जुब करते हुए उसे उस शख्स के मानिन्द क़रार दिया है जो हजर की तरफ़ खजूरें लाद कर ले गया था हाला कि खुद हजर में कसरत से खजूर पैदा होती थी।

यह एक मसल है जो ऐसे मौक़े पर इस्तेमाल होती है जहां कोई अपने से ज़ियादा जानने वाले और वाकिफ़ कार को बताने बैठ जाए। इस मसल का वाकिआ यह है कि हजर से, कि जो बहरीन से नज़दीक एक शहर है, एक शख्स बसरे में खरीदो फ़रोख्त के लिये आया, और माल फ़रोख्त करने के बाद जब ख़रीदने के लिये बाज़ार का जाइज़ा लिया तो ख़जूरों के अलावा उसे कोई चीज़ अर्ज़ां (सस्ती) नज़र न आई। लिहाज़ा उस ने ख़जूरों ही को ख़रीदने का फ़ैसला किया और जब खजूरें लाद कर हजर पहुंचा तो वहां कसरतो अर्ज़ानी (अधिकता का सस्तेपन) की वजह से इस के सिवा कोई चारा न देखा कि फिल हाल उन्हें ज़खीरा कर के रख दे, और जब उन का भाव चढ़े, तो उन्हें फ़रोख्त करे। मगर उन का भाव दिन ब दिन घटता गया यहां तक कि इस इन्तिज़ार में वह तमाम की तमाम सड़ गल गई, और उस के पल्ले गुठलियों के अलावा कुछ न पड़ा। बहरहाल मुआविया ने पैगमबर (स0) के मबऊस बरिसालत होने का तज़किरा करने के बाद ख़ुलफाए सलासह के महामिद व फ़ज़ाइल और उन के मरातिब व मदारिज पर अपनी राय का इज़हार करते हुए तहरीर कियाः---

सहाबा में सब से अफ़ज़ल और अल्लाह और मुसलमानों के नज़दीक़ सब से रफीइल मंज़िलत खलीफ़ए अव्वल थे जिन्हों ने एक आवाज़ पर सब को जमअ किया, इन्तिशार को मिटाया और अहले रवह से जंगो क़िताल किया। उन के बाद ख़लीफ़ए सानी का दरजा है जिन्होंने फुतूहात हासिल कीं। शहरों को आबाद किया, और मुशरिकीन की गर्दनों को ज़लील किया। फिर खलीफ़ए सालिस का दरजा है जो मज़लूम व सितम रसीदा थे, जिन्हों ने मिल्लत को फ़रोग दिया और कलिमए हक़ फैलाया।

मुआविया के इस साज़े बे आहंग के छेडने का मकसद यह था कि वह इन बातों से आप के एहसासात को मजरुह और जजंबात को मुशतइल कर के आप के क़लम या ज़बान से ऐसी बात उगलवाए कि जिस से असहाबे सलासह कि मज़म्मत व तंकीस होती हो, और फिर उसे उछाल कर शाम व इराक के बाशिन्दों को आप को खिलाफ़ भड़काए। अगरचे वह अहले शाम के ज़िहनों में पहले ही यह बिठा चुका था कि अली इबने अबी तालिब ने उसमान के खिलाफ़ लोगों को उकसाया, तलहा व ज़ुबैर को क़त्ल क़राया, उम्मुल मोमिनीन को घर से बे घर किया, और हज़ारों मुसलमानों का खून बहाया, और वह अस्ल वाक़िआत से बे खबर होने की वजह से उन बे बुनियाद बातों पर यक़ीन किये बैठे थे। फिर भी महाज़े इख़तिलाफ़ को मज़बूत करने के लिये उस ने ज़रुरी समझा कि उन्हें यह ज़िहन नशीन कराए कि हज़रत असहाबे सलासा की फ़ज़ीलत से इंकारी और उन की दुशमनी और इनाद रखते हैं और सनद में आप की तहरीर को पेश करे और उस के ज़रीए से अहले इराक को और भी वर्गलाए, क्यों कि उन की अकसरीयत उन खोलफ़ा के माहौल से मुतअस्सिर और उन की फ़ज़ीलत व बर्तरी की काइल थी। मगर अमीरुल मोमिनीन (अ0 स0) ने उस के मकसद को भांप कर ऐसा जवाब दिया कि जिस से उस की ज़बान में गिरह लग जाए और किसी के सामने उसे पेश करने की जुरअत न कर सके। चुनांचे उस की इसलाम दुशमनी और ब मजबूरी इताअत क़बूल करने की वजह से उस की पस्त मर्तबगी को ज़ाहिर करते हुए उसे अपनी हद पर ठहरने की हिदायत की है। और उन मुहाजिरीन के दरजात मुक़र्रर करने और उन के तबक़ात पहचनवाने से मुतनब्बेह किया है कि जो उस के मुक़ाबले में इस लिहाज़ से बहर सूरत फौकियत रखते थे कि उन्हों ने हिजरत में पेश क़दमी की और यह कि तलीक़ व आज़ाद कर्दा और मुहाजरीन से दूर का भी वासता न रखता था, इस लिये मसअले जेरे बहस में उस की हैसियत वही क़रार दी है जो जुए के तीरों में नक्ली तीर की होती है। और यह मसल एक ऐसे मौके पर इस्तिमाल की जाती है, जहां कोई शख्स ऐसे लोगों पर फख्र करे कि जिन से उसे कोई लगाव न हो। रहा उस का यह दअवा कि फ़लां अफ़ज़ल है तो हज़रत ने लफ्ज़े ज़अम्ता (तुम ने अपने ज़अमे नाकिस में यह खयाल किया है) से यह वाज़ेह कर दिया है कि उस का ज़ाती ख़्याल है जिसे हक़ीक़त से दूर का भी तअल्लुक नहीं, क्यों कि यह लफ्ज़ उसी मौक़े पर इस्तिमाल होती है जहां किसी ग़लत और ख़िलाफ़े वाकिआ चीज़ का इद्देआ किया जाए।

इस दअवए अफ़ज़लियत को ज़अमे बातिल क़रार देने के बाद बनी हाशिम के उन खुसूसीयात व इमतियाज़ात की तरफ़ इशारा किया है कि जो दूसरों के मुक़ाबिले में उन के कमालात की बलन्द हैसियत को नुमांया करते हैं। चुनांचे जिन लोगों ने पैगमबर (स0) के साथ शरीक हो कर शहादत का शरफ़ हासिल किया उन्हों ने बलन्द से बलन्द दरजात पाए। मगर हुस्त्रे कार कर्दगी की वजह से जो इमतियाज़ हज़रत हमज़ा को हासिल हुआ वह दूसरों को हासिल न हो सका। चुनांचे पैगमबर (स0) ने उन्हें सैयिदुश शोहदा के लक़ब से याद किया, और चौदह मर्तबा उन पर नमाज़े जनाज़ा पढ़ी कि जिन की तक़बीरों की मजमीऊ तअदाद सत्तर तक पहुंच गई। इसी तरह मुख़्तलिफ़ जंगों में मुजाहिदीन के हाथ क़तअ हुए। चुनांचे जंगे बद्र में हबी-। इबने यसाफ़ और मआज़ इबने जबल को और जंगे ओहद में अमर इबने जमूहे सलमी और उबैदुल्लाह इबने अतीक के हाथ काटे गए। मगर जब जंगे मुतअ में हज़रत जएफ़र इबने अबी तालिब के हाथ क़तअ हुए तो पैगम्बर (स0) ने उन्हें खुसूसीयत बख्शी कि उन्हें अत्तैयारो फ़िल जन्नह और ज़ुल जनाहैन के लक़ब से याद किया। बनी हाशिम के इमतियाज़े खुसूसी के बाद अपने फ़ज़ाइलो कमालात की तरफ़ इशारा किया है कि जिन से तारीखो हदीस के दामन छलक रहे हैं और जिन की सेहत शको शुब्हात से आलूदा न हो सकी। चुनांचे मुहद्दिसीन का क़ौल हैः---

जितनी, क़ाबिले वसूक़ ज़राए से अली इबने अबी तालिब (अ0 स0) की फ़ज़लत में अहादीस वारिद हुई हैं, पैगमबर (स0) के सहाबा में से किसी एक के बारे में भी नहीं आई।

इन फ़ज़ाइले मखसूसए अहलेबैत में से एक अहम फ़ज़ीलत यह है कि जिस की तरफ़ इन लफ़्ज़ों में इशारा किया है कि, हम वह हैं जो बराहे रास्त अल्लाह से नेमतें ले कर पर्वान चढ़े हैं, और दूसरे हमारे एहसान पर्वर्दा हैं। यह वह मेराजे फ़ज़ीलत है कि जिस की बलन्दियों तक बलन्द से बलन्द शख्सीयत की भी रसाई नहीं हो सकती और हर मंज़िलत उस के सामने पस्तो सर निंगू नज़र आती है। चुनांचे इबने अबिल हदीद मोतज़िली इस जुमले की अज़्मतो रिफ़अत का एतिराफ़ करते हुए उस के मआनी व मतालिब के सिलसिले मे तहरीर करते हैं।

हज़रत यह फरमाना चाहते हैं कि हम पर किसी बशर का एहसान नहीं, बल्कि खुदा वन्दे आलम ने हमें तमाम नेमतें बराहे रास्त दी हैं और हमारे और अल्लाह के दरमियान कोई वासिता हाईल नहीं है। और तमाम लोग हमारे एहसान पर्वर्दा और साख्ता व पर्दाख्ता हैं, और हम अल्लाह और मखलूक के दरमियान वासिता हैं। यह एक अज़ीम मंज़िलत का और जलील मक़ाम है। इन अल्फ़ाज़ का ज़ाहिर मफहूम वही है जो तुम्हारे गोशगुज़ार हो चुका है लेकिन उन के बातिनी, मअनी यह हैं कि हम अल्लाह के बन्दे हैं, और तमाम लोग हमारे बन्दे और हल्का बगोश हैं। (शर्हे इबने अबिल हदीद जिल्द 3 सफहा 451)

लिहाज़ा जब यह फ़ैज़ाने इलाही की मंज़िले अव्वल और मखलूक के लिये सर चश्मए नेमात ठहरे तो मख्लूकात में से किसी को उन की सत्ह पर नहीं लाया जा सकता, और न दूसरों के साथ मुआशिरती तअल्लुक़ात के क़ायम करने से किसी को उन का हम पाया तसव्वुर किया जा सकता है, चे जाए कि वह अफराद कि जो उन के कमालात व खुसूसियात से एक मुतज़ाद हैसियत रखते हों, और हर मौक़े पर हक़ व सदाक़कत से टकराने के लिये उठ खड़े हों। चुनांचे अमीरुल मोमिनीन (अ0 स0) मुआविया के सामने तस्वीर के दोनों रुख रखते हुए फरमाते हैं कि हम में से पैगमबरे अकरम (स0) थे, और झुठलाने वालों में पेश पेश तुम्हारा बाप अबू सुफियान था, हम में से हज़रते हमज़ा थे जिन्हें पैगमबर (स0) ने असदुल्लाह का लक़ब दिया, और तुम्हारा नाना अत्बा इबने रबीआ असदुल्लाह अहलाफ़ होने पर नाज़ां था। चुनांचे जब जंगे बद्र में हमज़ा इबने अब्दुल मुत्तलिब हूं जो अल्लाह और उस के रसूल का शेर हैं। जिस पर अत्बा ने कहा, मैं हम सौगंद जमाता का शेर हूं। और असदुल अहलाफ़ भी रिवायत हुआ है। मक्सद उस का यह था कि वह हर हलफ़ उठाने वाली जमाअत का सर्दार था। इस हलफ़ का वाकिआ यह है कि जब बनी अब्दे मनाफ़ को क़बायले अरब में एक इमतियाज़ी हैसियत हासिल हुई तो उन्हों ने चाहा कि बनी अब्दुद्दार के हाथों में जो खानए कअबा के मंसब हैं वह उन से ले लिये जायें और उन्हें तमाम उहदों से अलग कर दिया जाए। इस सिलसिले में बनी अब्दे मनाफ़ ने बनी अब्दुल उज्ज़ा बनी तीम, बनी ज़ोहरा, और बनी हारिस को अपने साथ मिला लिया और बाहम अहदो पैमान किया और उस अहद को उस्तुवार करने के लिये इत्र में अपने हाथ डुबो कर हलफ़ उठाया कि वह एक दूसरे की नुसरत व इम्दाद करेंगे, जिस की वजह से यह क़बायल हुलुफ़ए मुतैयेबीन कहलाते हैं। और दूसरी तरफ़ बनी अब्दुद्दार, बनी मखज़ूम, बनी सहम और बनी अदी, ने भी हलफ़ उठाया कि वह बनी अब्दे मनाफ़ और उन के हलीफ़ क़बायल का मुक़ाबला करेंगे। यह क़बायल अहलाफ़ कहलाते हैं। अत्बा ने हुलफ़ाए मुतैयेबीन का अपने को सर्दार गुमान किया है। बअज़ शारेहीन ने इस से अबू सुफियान मुराद लिया है, लेकिन यह चन्दां वज़न नहीं रखता, क्यों कि यह रुए सुखन मुआविया से है और उस से मुआविया पर कोई ज़द नहीं पड़ती जब कि बनी अब्दे मनाफ़ भी उस हलफ़ में शामिल थे। फिर फरमाते हैं कि हम में से जवानाने अहले जनत्रत के सरदार हैं, और पैगमबर (स0) की यह हदीस, अल हसन वल हुसैन सौयिदा शबाबे अहलिल जत्रह। की तरफ इशारा है, और तुम में से जहत्रमी लड़के हैं। यह अत्बा इबने मुईत के लड़कों की तरफ़ इशारा है कि जिन के जहत्रमी होने की खबर देते हुए पैगमबर (स0) ने अत्बा से कहा था कि, लका व लहुमुत्रार (तेरे और तेरे लड़कों के लिये जहत्रम है) फिर फरमाते हैं कि हम में से बेहतरीन ज़नाने आलमियां फ़ातिमतुज़्ज़हरा हैं और तुम में से हम्मालतुल हतब इस से मुआविया की फुफी उम्मे जमील बिन्ते हर्ब मुराद है जो अबू लहब के घर में थी। यह कांटे जमा कर के रसूलुल्लाह (स0) की राह में बिठाया करती थी। कुरआने मजीद में अबू लहब के साथ उस का भी तज़किरा इन लफ़ज़ों में हैः---

वह अनक़रीब भड़कने वाली आग में दाख़िल होगा और उस की बीवी लकड़ियों का बोझ उठाए फिरती है।

मतलब यह है कि जो शख्स पन्दो नसीहत में मुबालग़े से काम लेता है, तो उस में उस की ज़ाती अघ़राजॉ व मक़ासिद का लगाव समझा जाता है। ख्वाह वह नसीहते कितनी ही नेक नीयत व बे ग़रज़ी पर मबनी हों। यह मिसरा एसे ही मौक़ों पर बतौरे मसल इस्तेमाल होता है।

मकतूब (पत्र) – 29.

अहले बसरा की तरफ़ सेः---

तुम्हारी तफ़रीक़ा पर्दाज़ी व शोरिश अंगेज़ी की जो हालत थी, उस को तुम खुद समझते हो, लेकिन मैं ने तुम्हारे मुजरिमों से दर ग़ुज़र किया, पीठ फिराने वालों से तलवार रोक ली, और बढ़ कर आने वालों के लिये मैं ने हाथ फैला दिये। अब अगर फिर तबाह कुन इक़दामात और कज फ़हमियों से पैदा होने वाले सफ़ीहाना खयालकुन ने तुम्हें अहद खिकनी और मेरी मुख़ालिफ़त की राह पर ड़ाला, तो सुन लो, कि मैं ने अपने घोड़ों को क़रीब कर लिया है और ऊंटों पर पालान कस लिये हैं, और तुम ने मुझे हरकत करने पर मजबूर किया, तो तुम में इस तरह मअरिका आराई करूंगा कि उस के सामने जंगे जमल की हक़ीक़त बस यह रह जायेगी जैसे कोई ज़बान से कोई चीज़ चाट ले। फिर भी जो तुम में फरमां बर्दार है, उन के फ़ज़्लो शरफ़ और खैर ख़्वाही करने वाले के हक़ को पहचानता हूं, और मेरे यहां यह नहीं हो सकता कि मुजरिमों के साथ बहे गुनाह और अहद शिकनों के साथ वफ़ादार भी लफ़ेट में आ जायें।

मकतूब (पत्र) -30

मुआविया के नामः

जो दुनिया का साज़ो सामान तुम्हारे पास है उस के बारे में अल्लाह से ड़रो, और उस के हक़ को पेशे नज़र रखो। उन हुक़ूक़ को पहचानों जिन से ला इल्मी में तुम्हारा कोई उज्र सुना न जायेगा, क्यों कि इताअत के लिये वाज़ेह निशान, रौशन राहें, सीधी शाह राहें और एक मंज़िले मख़्सूद मौजूद है। अक़्ल मन्द व दाना उन की तरफ़ बढ़ते हैं, और सिफ़्ले और क़मीने उन से कतरा जाते हैं जो उन से मुंह फेर लेता है, वह हक़ से बेराह हो जाता है और गुमराहियों में भटकने लगता है। अल्लाह उस से अपनी नेमतें छीन लेता है, और उस पर अज़ाब नाज़िल करता है। लिहाज़ा अपना बचाव करो। अल्लाह ने तुम्हें रास्ता दिखा दिया है, वह मंज़िल बता दी है जहां तुम्हारे मुआमलात को पहुंचना है। तुम ज़ियाकारी की मंज़िल और क़ुफ्र के मक़ाम की करफ़ बगटुट दौड़े जा रहे हो। तुम्हारे नफ़्स ने उन्हें बुराइयों में ढकेल दिया है और गुमराहियों में झोंक दिया है और मुहलिक़ों में ला उतारा है, और रास्तों को तुम्हारे लिये दुशवार ग़ुज़ार बना दिया है।