वसीयत नामा – 31.

सिफ्फ़ीन से पलटते हुए जब मक़ामे हाज़िरीन में मंज़िल की, तो इमामे हसन अलैहिस्सलाम के लिये यह वसीयत नामा तहरीर फ़रमायाः---

यह वसीयत है उस बाप की जो फ़ना होने वाला, और ज़माने (की चीरा दस्तीयों) का इक़रार करने वाला है। जिस की उम्र पीठ फिराए हुए है और जो ज़माने की सख़्तियों से लाचार है, और दुनिया की बुराइयों को महसूस कर चुका है, और मरने वालों के घरों में मुक़ीम और कल को यहां से रख्ते सफ़र बाध लेने वाला है, उस बेटे के नाम जो न मिलने वाली बात का आर्ज़ूमन्द, जदए अदम का राह सिपार, बीमारियों का हदफ़, ज़माने के हाथ गिर्वी, मुसीबतों का निशाना, दुनिया का पाबन्द, और उस की फ़रेब कारियों का ताजिर, मौत का क़र्ज़दार, अजल का क़ैदी, ग़मों का हलीफ़, हुज़नो मलाल का साथी, आफ़तों में मुब्तला, नफ्स से अज़ीज़, और मरने वाले का जा नशीन है।

बअदहू तुम्हें मअलूम होना चाहिये कि मैं ने दुनिया की रुगर्दानी, ज़माने की मुंह जोरी, और ख़िरत की पेश कदमी से जो हक़ीक़त पहचानी है, वह इस अम्र के लिये क़ाफ़ी है कि मुझे दूसरे तज़किरों और अपनी फिक्र के अलावा दूसरी कोई फिक्र न हो। मगर उसी वक्त जब कि दूसरों के फिक्र व अन्देशों को छोड़ कर मैं अपनी ही धुन में खोया हुआ था, और मेरी अक्लो बसीरत ने मुझे ख़्वाहिशों से मुन्हरिफ़ व रु गर्दां कर दिया और मुझे वाकई हक़ीक़त व बेलाग सदाक़त तक पहुंचा दिया।

मैं ने देखा कि तुम मेरा ही एक टुकड़ा हो, बल्कि जो मैं हूं वही तुम हो। यहां तक कि अगर तुम पर कोई आफ़त आए तो गोया मुझ पर आई है, और तुम्हें मौत आए तो गोया मुझे आई है। इस से मुझे तुम्हारा उतना ही ख्याल हुआ जितना अपना हो सकता है। लिहाज़ा मैं ने यह वसीयत नामा तुम्हारी रहनुमाई में इसे मुअय्यन समझते हुए तहरीर किया है। ख्वाह इस के बाद में ज़िन्दा रहूं या दुनिया से उठ जाऊं।

मैं तुम्हें वसीयत करता हूं कि अल्लाह से डरते रहना, उस के अहकाम की पाबन्दी करना, उस के ज़िक्र से कल्ब को आबाद रखना, और उसी की रस्सी को मज़बूती से तामे रहना। तुम्हारे और अल्लाह के दरमियान जो रिश्ता है उस से ज़ियादा मज़बूत रिश्ता ौर हो भी क्या सकता है, बशर्ते की मज़बूती से उसे थामे रहो। वअज़ व पन्द से दिल को ज़िन्दा रखना, और ज़हद से उस की ख़्वाहिशों को मुर्दा। यक़ीन से उसे सहारा देना, और हुकूमत से उसे पुर नूर बनाना। मौत की याद से उसे क़ाबू में करना, फ़ना के इक़रार पर उसे ठहराना। दुनिया के हादिसे उस के सामने लाना, गर्दिशे रोज़गार से उसे ड़राना। गुज़रे हुओं के वाक़िआत उस के सामने रखना। तुम्हारे पहले वालों पर जो बीती है उसे याद दिलाना। उन के घरों और खण्डरों में चलना फिरना, और देखना कि उन्हों ने क्या कुछ किया, कहां से कूच किया, कहां उतरे, और कहां ठगरे हैं। देखोगे तो तुम्हें साफ़ नज़र आयेगा कि वह दोस्तों से मुंह मोड कर चल दिये हैं, और पर्देस के घर में जा कर उतरे हैं, और वह वक्त दूस नहीं कि तुम्हारा शुमार भी उन में होने लगे। लिहाज़ा अपनी अस्ल मंज़िल का इन्तिज़ाम करो। और अपनी आख़िरत का दुनिया से सौदा न करो। जो चीज़ जानते नहीं हो उस के मुतअल्लिक बात न करो। और जिस चीज़ का तुम से तअल्लुक नहीं है उस के बारे में ज़बान न हिलाओ। जिस राह में भटक जाने का अंदेशा हो उस राह में क़दम न उठाओ। क्यों कि भटकने की सरगर्दियां दोख कर क़दम रोक लेना खतरात मोल लेने से बेहतर है। नेकी की तलक़ीन करो ताकि खुद भी अहले खैर में महसूब हो। हाथ और ज़बान के जरीए बुराई को रोकते रहो। जहां तक हो सके बुरों से अलग रहो। खुदा की राह में जिहाद का हक़ अदा करो, और उस के बारे में किसी मलामत करने वाले की मलामत का असर न लो। हक़ जहां हो सख्तियों में फ़ांद कर उस तक पहुंच जाओ। दीन में सूझ बूझ पैदा करो। सख्तियों को झेल जाने के खूगर बनो। हक़ की राह में सब्र की शिकेबाई बेहतरीन सीरत है। हर मुआमले में अपने को अल्लाह के हवाले कर दो। क्यों कि ऐसा करने से तुम अपने को एक मज़बूत पनाह गाह और क़वी मुहाफ़िज़ के सिपुर्द कर दोगे। सिर्फ अपने पर्वरदिगार से सवाल करो, क्यों कि देना और न देना बस उसी के इख्तियार में है। अपने अल्लाह से ज़ियादा से ज़ियादा भलाई के तालिब हो। मेरी वसीयत को समझो और उस से रु गर्दानी न करो। अच्छी बात वही है जो फ़ायदा दे, और उस इल्म में कोई भलाई नहीं जो फ़ायदा रसां न हो। जिस इल्म का सीखना सज़ावार न हो उस से कोई फायदा भी नहीं उठाया जा सकता।

ऐ फ़र्ज़न्द जब मैं ने देखा कि काफ़ी उम्र को पहिंच चुका हूं और दिन बदिन ज़ोफ़ बढ़ता जा रहा है तो मैं ने वसीयत करने में जल्दी की, और उस में कुछ अहम मज़ामीन दर्ज कि कहीं ऐसा न हो कि मौत मेरी तरफ़ सबक़त कर जाए और दिल की बात दिल ही में रह जाए और बदन की तरह अक्ल व राय भी कमज़ोर पड़ जाए या वसीयत से पहले ही तुम पर कुछ ख़्वाहिशात का तसल्लुत हो जाए, या दुनिया के झमेले तुम्हें घेर लें कि तुम भड़क उठने वाले मुंह ज़ोर ऊंट की तरह हो जाओ। क्यों कि कमसीन का दिल उस ख़ाली ज़मीन की मानिन्द होता है जिस में जो बीज डाला जाता हैं उसे क़बूल कर लेती है। लिहाज़ा क़ब्ल इस के कि तुम्हारा दिल सख्त हो जाए और तुम्हारा ज़ेहन दूसरी बातों में लग जाए, मैं ने तअलीम देने के लिये क़दम उठाया ताकि तुम अक्ले सलीम के ज़रीए उन चीज़ों के क़बूल करने के लिये आमादा हो जाओ, कि जिन की आज़माइश और तजरिबे की ज़हमत से तजरिबा कारों ने तुम्हें बचा लिया है। इस तरह तुम तलाश की ज़हमत से मुस्तगनी और तजरिबे की कुलफतों से आसूदा हो जाओगे और तजरिबा और इल्म की वह बातें तुम तक पहुंच रही हैं कि जिन पर हम मुत्तलअ हुए फिर वह चीज़ें भी उजागर हो कर तुम्हारे सामने आ रही हैं कि जिन में से कुछ, मुम्किन है, हमारी आंखों से ओझल हो गई हों।

ऐ फ़र्ज़न्द अगरचे मैं ने इतनी उम्र नहीं पाई जितनी अगले लोगों की हुआ करती थी, फिर भी मैं ने की कार गुज़ारियों को देखा, उन के हालात वाक़िआत में गौर किया मैं भी उन्ही में का एक हो चुका हूं, बल्की उन सब के हालात व मअलूमात जो मुझ तक पहुंच गए हैं उन की वजह से ऐसा है, गोया मैं ने उन के अव्वल से ले कर आखिर तक के साथ ज़िन्दगी गुज़ारी है। चुनांचे साफ़ को गंदले और नफ़ा नुक़सान से अलग कर के पहचान लिया है, और सब का निचोड़ तुम्हारे लिये मख्सूस कर रहा हूं, और मैं ने खूबियों को चुन चुन कर तुम्हारे लिये समेट दिया है। और बे मअनी चीज़ो को तुम से जुदा रखा है, और चुंकि मुझे तुम्हारी हर बात का उतना ही ख़याल है जितना एक शफीक़ बाप को होना चाहिये, और तुम्हारी अख्लाक़ी तरबियत भी पेशे नज़र है, लिहाज़ा मुनासिब समझा है कि यह तअलीमो तरबियत इस हालत में हो कि तुम नव उम्र और बिसाते दह्र पर ताज़ा वारिद हो, और तुम्हारी नीयत खरी और नफस पाकीज़ा है, और मैं ने चाहा था कि पहले किलाबे खदा, अहकामे शरअ औऱ हलालो हराम की तअलीम दूं, और इस के अलावा दूसरी चीज़ो का रूख न करूं। लेकिन यह अन्देशा पैदा हुआ कि कहीं वह चीज़ें जिन में लोगों के अक़ायद का तज़किरा तुम से मुझे ना पसन्द था, मगर इस पहलू को मज़बूत कर देना तुम्हारे लिये मुझे बेहतर मअलूम हुआ, इस से कि तुम्हें ऐसी सूरते हाल के सिपुर्द कर दूं जिस में मुझे तुम्हारे लिये हलाकत की तौफ़ीक़ देगा, और सहीह रास्ते की राहनुमाई करेगा, इन वुजूह से तुम्हें वसीयत नामा लिखता हूं।

बेटा याद रखो कि मेरी इस वसीयत से जिन चीज़ों की तुम्हें पाबन्दी करना है उन में सब से ज़ियादा मेरी नज़र में जिस चीज़ की अहमीयत है वह अल्लाह का तक़वा है। और यह कि जो फ़रायज़ अल्लाह की तरफ़ से तुम पर आयद हैं उन पर इकतिफ़ा करो, और जिस राह पर तुम्हारे आबा व अज्दाद और तुम्हारे घराने के अफ़राद चलते रहे हैं उसी पर चलते रहो, क्यों कि जिस तरह तुम अपने लिये नज़र व फिक्र कर सकते हो उन्हों ने इस नज़र व फिक्र में कोई कसर उठा न रखी थी। मगर इन्तिहाई गौरो फिक्र ने भी उन को इसी नतीजे तक पहुंचाया कि जो उन्हे अपने फ़रायज़ मअलूम हों उन पर इकतिफ़ा करें और ग़ैर मुतअल्लिक चीज़ों से क़दम रोक लें। लेकिन अगर तुम्हारा नफ्स इस के लिये तैयार न हो कि बगैर ज़ाती तहक़ीक के इल्म हासिल किये हुए, जिस तरह उन्हो ने हासिल किया था, इन बातों को क़बूल करे तो बहर हाल यह लाज़िम है कि तुम्हारे तलब का अन्दाज़ सीखने और समझने का हो, न शुब्हात में फ़ांद पडने और बह्सो निज़ाअ में उलझने का और इस फ़िक्रो नज़र को शुरूउ करने से पहले अल्लाह से मदद के ख्वास्तगार हो, और उस से तौफ़ीक़ो ताईद की दुआ करो, और हर उस वहम के शाइबे से अपना दामन बचाओ कि जो तुम्हें शुब्हे में ड़ाल दे, या गुमराही में छोड़ दे, और जब यह यक़ीन हो जाए कि अब तुम्हारा दिल साफ़ हो गया है और उस मे असर लेने की सलाहीयत पैदा हो गई है और ज़िहन पूरे तौर पर यकसूई के साथ तौयार है, और तुम्हारा ज़ौक़ो शौक़ एक नुक्ते पर जम गया है तो फिर उन मसायल पर ग़ौर करो जो मैं ने तु्म्हारे सामने बयान किये हैं, लेकिन तुम्हारे हस्बे मंशा दिल की यकसूई और फ़िक्रो नज़र की आसूदगी हासिल नहीं हुई है तो समझ लो कि तुम अभी उस वादी में शबकोर ऊंटनी की तरह हाथ पैर मार रहे हो, और जो दिन की हक़ीक़त का तलबगार हो वह तारीकी में हाथ पांव नहीं मारता और न ग़लत मब्हस करता है, इस हालत में क़दम न रखना इस वादी में बेहतर है।

अब ऐ फ़र्ज़न्द ! मेरी वसीयत को समझो, और यह यक़ीन रखो कि जिस के हाथ में मौत है उसी के हाथ में ज़िन्दगी भी है, और जो पैदा करने वाला है वही मारने वाला भी है, और जो नीस्तो नाबूद करने वाला है, वही दोबारा पलदाने वाला भी है, और जो बीमार डालने वाला है वही सेहत आता करने वाला भी है, और बहर हाल दुनिया का वही निज़ाम रहेगा जो अल्लाह ने उस के लिये मुक़र्रर कर दिया है। नेमतों का देना, इब्तिला व आज़माइश में डालना, और आखिरत में जज़ा देना या वह कि जो उस की मशीयत में गुज़र चुका है और हम उसे नहीं जानते तो जो चीज़ उस में तुम्हारी समझ में न आए, तो उसे अपनी ला इल्मी पर महमूल करो। क्यों कि जब तुम पहले पहल पैदा हुए थे, तो कुछ न जानते थे बाद में तुम्हें सिखाया गया और अभी कितनी ही ऐसी चीज़ें हैं कि जिन से तुम बे ख़बर हो कि उन में तुम्हारा ज़िहन परीशान होता है और नज़र भचकती है औऱ फिर उनहें दान लेते हो लिहाज़ा उसी का दामन थामो जिस ने तुम्हें पैदा किया और रिज़्क दिया और ठीक ठाक बनाया। उसी की बस परस्तिश करो, उसी की तलब हो उसी की डर हो।

ऐ फ़र्ज़न्द ! तुम्हें मालूम होना चाहिये कि किसी एक ने भी अल्लाह सुब्हानहू की तअलीमात को ऐसा पेश नहीं किया, जैसा रसूलुल्लाह (स0) ने। लिहाज़ा उन को बतीबे खातिर अपना पेशवा, और नजात का रहबर मानो। मैं मे तुम्हें नसीहत करने में कोई कमी नहीं की, और तुम अपने सूदो बहबूद पर उस हद तक नज़र नहीं कर सते जिस हद तक मैं तुम्हारे लिये सोच सकता हूं।

ऐ फ़र्ज़न्द ! यक़ीन करो कि अगर तुम्हारे पर्वरदिगर का कोई शरीक होता तो उस के भी रसूल आते, और उस के सल्तनत व फ़रमां रवाई के भी आसार दिखाई देते और उस के अफ़आल व सिफ़ात भी कुछ मअलूम होते मगर वह एक अकेला खुदा है। जैसा कि उस ने खुद बयान किया है। उस के मुल्क में कोई उस से टक्कर नहीं ले सकता। वह हमेशा से है और हमेशा रहेगा। वह बग़ैर किसी नुक्तए आग़ाज़ के तमाम चीज़ो से पहले है, और बग़ैर किसी इन्तिहाई हद के सब चीज़ो के बाद है। वह इस से बलन्दो बाला है कि उस की रूबूबीयत का इसबात क़ल्ब या निगाह के घेरे में आ जाने से वाबस्ता है। जब तुम यह जान चुके हो तो फिर अमल करो, वैसा जो तुम ऐसी मखलूक को अपनी पस्त मंज़िलत, का मक्दिरत और बढी हुई आजिज़ी और स की इताअत की जुस्तुजू और उस की सजा के खोफ़ और उस की नाराज़गी के अन्देशे के साथ अपने पर्वरदिगार की तरफ़ बदुत बड़ी एहतियाज के होते हुए करना चाहिये। उस ने तुम्हें उन्हीं चीज़ो का हुक्म दिया है जो अच्छी है, और उनहीं चीजों से मना किया है जो बुरी हैं।

ऐ फ़र्ज़न्द ! मै ने दुनिया और उस की हालत और उस की बे सबाती व ना पायदारी से खबरदार कर दिया है, औऱ आखिरत और आखिरत वालों के लिये जो सरो सामाने इशरत मुहैया है उस से भी आगह कर दिया है, और उन दोनों की मिसालें भी तुम्हारे सामने पेश करता हूं ताकि उन से इबरत हासिल करो और उन के तक़ाज़े पर अमल करो। जिन का लोगों ने दुनिया को खूब समझ लिया है उन की मिसाल उस मुसाफ़िर की सी है जिन क़ह्तज़दा मंज़िल (सूखाग्रस्त स्थान) से दिल उचाट हुआ, और उन्हों ने एक सर सब्ज़ो शादाब मकाम और एक तरो ताज़ा व पुरा बहार जगह का रुख किया, तो उन्हों ने रास्ते की दुशवारियों को झेला, दोस्तों की जुदाई बर्दाश्त की, सफ़र की सऊबतें गवारा कीं, और खाने की बद मज्गियों पर सब्र किया ताकि मंज़िल की पहनाई और दाइमी क़रारगह तक पहुंच जायें। इस मक्सद की धुन में उन्हें इन सब चीज़ों से कोई तक्लीफ़ महसूस नहीं होती, और जितना भी खर्च हो जाए उस में नुक़सान मअलूम नहीं होता। उन्हें अब सब से ज़ियादा वही चीज़ मर्ग़ूब है जो उन्हें मंज़िल के क़रीब और मकस्द से नज़दिक़ कर दे औऱ इस के बर खिलाफ़ उन लोगों की मिसाल, जिन्होने दुनिया से फ़रेब खाया, उन लोगों की सी है कि जो एक शादाब सब्ज़ा ज़ार में हों और वहां से वह दिल बर्दाश्ता हो जायें। उन के नज़दीक सख्त तरीन हादिसा यह होगा कि वह मौजूदा हालत को छोड़ कर उधर जायें कि जहां उन्हें अचानक पहुंचना है और बहर सूरत वहां जाना है।

ऐ फ़र्ज़न्द ! अपने और दूसरे के दरमियान हर मुआमले में अपनी ज़ात को मीज़ान क़रार दो, जो अपने लिये पसन्द करते हो वही दूसरों के लिये पसन्द करो, और जो अपने लिये नहीं चाहते वह दूसरों के लिये भी न चाहो। जिस तरह यह चाहते हो कि तुम पर ज़ियादती न हो यूं ही दूसरों पर भी ज़ियादती न करो, और जिस तरह यह चाहते हो कि तुम्हारे साथ हुस्ने सुलूक हो, यूं ही दूसरों के साथ भी हुस्ने सुलूक से पेश आओ। दूसरों की जिस बात को बुरा समझते हो, उसे अपने में भी हो तो बुरा समझो, और लोगों के साथ तुम्हारा जो रवैया हो, उसी रवैये को अपने लिये भी दुरूस्त समझो। जो बात नहीं जानते हो उस के बारे में ज़बान न हिलाओ अगरचे तुम्हारे मअलूमात कम हों। दूसरो लिये वह बात न कहो जो अपने लिये सुनना गवारा नहीं करते। याद रखो ! कि खुद पसन्दी सहीह तरीक़ए कार के खिलाफ़ और अक्ल की तबाही का सबबह है। रोज़ी कमाने में दौड़ धूप करो और दूसरों के ख़ज़ांची न बनो, और अगर सीधी राह पर चलने की तौफ़ीक़ तुम्हारे शामिले हाल हो जाए तो इन्तिहीई दरजे तक बस अपने पर्वरदिगार के सामने तज़ल्लुल इखतियार करो। देखो! तुम्हारे सामने एक दुशवार गुज़ार और दूर दराज़ रास्ता है जिस के लिये बेहतरीन ज़ाद की तलाश और बक़र्दे किफ़ायत तोशे की फ़राहमी इस के अलाव सुबूक बारी ज़रूरी है। लिहाज़ा अपनी ताक़त से ज़ियादा अपनी पीठ पर बोझ न लादो कि उस का बार तुम्हारे लिये वबाले जान बव जायेगा। और जब ऐसे फ़ाक़ा कश लोग मिल जायें कि जो तुम्हारा तोशा उठा कर मैदाने हश्र मे पहूंचा दें और कल को जब तुम्हें उस की ज़रूरत पड़ेगी तुम्हारे हवाले कर दें तो उसे द़नीमत जानें और जितना हो सके उस की पुश्त पर रख दो। क्यों कि हो सकता है कि फिर तुम ऐसे शख्स को ढूढ़ो और न पाओ औऱ जो तुम्हारी दौलत मन्दी की हालत में तुम से क़र्ज़ मांग रहा है इस वअदे पर कि तुम्हारी तंग दस्ती के वक्त अदा कर देगा तो उसे ग़नीमत जानो।

याद रखो !तुम्हारे सामने एक दुशवार गुज़ार घाटी है जिस में हल्का फुल्का आदमी गरांबार आदमी से कहीं अच्छी हालत में होगा, और सुस्त रफ्तार तेज़ क़दम दौड़ने वाले की बनिस्बत बुरी हालत में होगा। और इस राह में ला मुहाला तुम्हारी मंज़िल जन्नत होगी या दोज़ख, लिहाज़ा उतरने से पहले जगह मुन्तखब कर लो, और पड़ाव ड़ालने से पहले उस जगह को ठीक टाक कर लो क्यों कि मौत के बाद खुशनूदी हासील करने का मौक़ा न होगा और न दुनिया की तरफ़ पलटने की कोई सूरत होगी। यक़ीन रखो कि जिस के क़बज़ए कुसरत में आस्मानो ज़मीन के ख़ज़ाने हैं उस ने तुमेहे सवाल करने की इदजाज़त के रखी है और क़बूल करने का ज़िम्मा लिया है और हुक्म दिया है कि तुम मांगो ताकि वह दे। तुम रहम की दर्खास्त करो ताकी वह रहम करे, उस ने अपने और तुम्हारे दर्मियान दर्बान खड़े नहीं किये जो तुम्हें रोकते हों, न तुम्हें इस पर मजबूर किया है कि तुम किसी को उस के यहां सिफ़ारिश के लिये लाओ तब ही काम हो, और तुम ने गुनाह किये हों तो उस ने तौबा की गंजाइश खत्म नहीं की, न सज़ा देने में जल्दी की है, और न तौबा व इनाबत के बाद वह कभी तअना देता है (कि पहले तुम ने यह किया था) न ऐसे मौक़ों पर उस ने तुम्हें रूसवा किया जहां तुम्हे रूसवा ही होना चाहिये था, और न उस ने तौबा करने में (कड़ी शर्ते लगा कर) तुम्हारे साथ सख्त गीरी की है। न गुनाह के बारे में तुम से सख्ती के साथ जिर्ह करता है और न अपनी रहमत से मायूस करता है। बल्कि उस ने गुनाह से कनारा कशी को भी एक नेकी क़रार दिया है, और बुराई एक हो तो उसे एक (बुराई) और नेकी एक हो तो उसे दस (नेकियों) के बराबर ठहराया है। उसने तौबा का दरवाज़ा खोल रखा है। जब भी उसे पुकारो वह तुम्हारी सुनता है, और जब भी राज़ो नियाज़ करते हुए उस से कुछ कहो, वह जान लेता है। तुम उस से मुरादें मांगते हो, और उसी के सामने दिल के भेद खोलते हो, उसी से अपने दुख दर्द का रोना हो, और मुसिबतों से निकालने की इलतिजा करते हो और अपने कामों में मदद मांगते हो और उस के रहमत के खज़ानो से वह चीज़ें तलब करते हो जिसके देने पर और कोई कुदरत नहीं रखता, जैसे उम्रों में दराज़ी, जिस्मानी सेहत व तवानाई और रिज़्क में वुस्अत और इस पर उसने तुम्हारे हाथ में अपने खज़ानों को खोलने वाली कुंजियां दे दी हैं, इस तरह कि तुम्हें अपनी बारग़ाह में सवाल करने का तरिक़ा बताया। इस तरह जब तुम चाहो दुआ के ज़रीए उस की नेमत के दरवाज़ों को खुलवा लो, उसकी रहमत के झालों को बरसा लो। हां, बअज़ औक़ात क़बूलियत में देर हो, तो उस से ना उम्मीद न हो, इस लिये कि अतीया और ज़ियादा मिलें, और कभी यह भी होता कि तुम एक चीज़ मांगते हो और वह हासिल नहीं होती मगर दुनिया या आखिरत में उस से बेहतर चीज़  तुम्हें मिल जाती है, या तुम्हारे किसी बेहतर मफ़ाद के पेश नज़र तुम्हें उस से महरूम कर दिया जाता है, इस लिये कि तुम कभी ऐसी चीज़े तलब कर लेते हो कि अगर तुम्हें दे दी जाये तो तुम्हारा दीन तबाह हो जाए। लिहाज़ा तुम्हें बस वह चीज़ तलब करना चाहिये जिस का जमाल पायदार हो और जिस का वबाल तुम्हारे सर न पड़ने वाला हो। रहा दुनिया का माल, तो न यह तुम्हारे लिये रहेगा, और न तुम इस के लिये रहोगे।

याद रखो!तुम आखिरत के लिये पैदा हुए हो, न कि दुनिया के लिये, फ़ना के लिये ख़ल्क़ हुए हो, न बक़ा के लिये, मौत के लिये बने हो, न हयात के लिये। तुम एक ऐसी मंज़िल में हो जिस का कोई ठीक नहीं, और एक ऐसे घर में हो जो आखिरत की गुज़रगाह है। तुम वह हो जिसका मौत पीछा किये हुए है। जिस से भागने वाला छुटकारा नहीं पाता। कितना ही कोई चाहे उस के हाथ से निकल नहीं सकता, और वह बहर हाल उसे पा लेती है। लिहाज़ा ड़रो इस से कि मौत तुम्हें ऐसे गुनाहों के आलम में आ जाए जिन से तौबा के ख़यालात तुम दिल में लाते थे, मगर वह तुम्हारे और तौबा के दरमियान हाइल हो जाए। ऐसा हुआ तो समझ लो कि तुम ने अपने नफ्स को हलाक कर डाला।

ऐ फ़र्ज़न्द! मौत को और उस मंज़िल को जिस पर तुम्हें अचानक वारिद होना है, और जहां मौत के बाद पहुंचना है, हर वक्त याद रखना चाहिये। ताकि जब वह आए तो तुम अपना हिफ़ाज़ती सरो सामाम मुकम्मल और उस के लिये अपनी कुव्वत मज्बूत कर चुके हो, और वह अचानक तुम पर न टूट पड़े कि तुम्हें बे दस्तो पा कर दे। खबरदार दुनियादारों की दुनिया परस्ती और उन की हिर्सो तमअ जो तुम्हें दिखाई देती है वह तुम्हें फ़रेब न दे, इस लिये कि अल्लाह ने उस का वस्फ़ खूब बयान कर दिया है, और दुनिया ने खुद भी अपनी हक़ीक़त वाज़ेह हर दी है और अपनी बुरायों को बेनक़ाब कर दिया है। इस (दुनिया) के गिर्वीदा भूंकने वाले कुत्ते और फाड़ खाने वाले दरिन्दे हैं जो आपस में एक दूसरे पर गुर्राते हैं। ताक़त वर क़मज़ोर को निगल लेता है और बडा छोटे को कुचल रहा है। इन में से कुछ चौपाए बंधे हुए और कुछ छुटे हुए हैं। और जिन्हों ने अपनी अक्लें खो दी है और अंजाने रास्ते पर सवार हो लिये हैं। यह दुशवार गुज़ार वादियों में आफ़तो की चरागाह में छुटे हुए हैं न कोई उन का गल्लाबान है जो उन की रखवाली करे न कोई चर्वाहा है जो उन्हें चराए। दुनिया ने उन को गुमाही के रास्ते पर लगया है और हिदायत के मीनार से उन की आंखें बन्द कर दी हैं। यह उस की गुमरहियों में सरगर्दा और उस की नेमतों में ग़ल्तां है और उसे ही अपने मअबूद बना रखा है। दुनिया उन से खेल रही है और यह दुनिया से खेल रहे हैं और उस के आगे की मंज़िल को भूले हुए हैं।

ठहरो! अंधेरा छटने दो। गोया (मैदाने हशर में) सवारियां उतर ही पड़ी हैं. तेज़ कदम चलते वालों के लिये वह वक्त दूर नहीं कि अपने क़ाफिले से मिल जायें, और मअलूम होना चाहिये कि जो शख्स लैलो नहार के मर्कब पर सवार है वह अगरचे ठहरा हुआ है मगर हक़िक़त में चल रहा है और अगर चे एक जगह पर कियाम किये हुये हुए है मगर मसाफत तय किये जा रहा है और वह यक़ीन के साथ जाने रहो कि तुम अपनी आर्ज़ुओं को पूरा कभी नहीं कर सकते, और जितनी ज़िन्दगी ले कर आए हो उस से आगे नहीं बढ़ सकते, और तुम भी अपने पहले वालों की राह पर हो, लिहाज़ा तलब का नतीजा माल का गंवाना होता है। यह ज़रूरी नहीं कि रिज़्क की तलाश में लगा रहने वाला कामयाब ही हो, और कदो काविश में एतिदाल से काम लेने वाला महरूम ही रहे। हर ज़िल्लत से अपने नफ्स को बलन्द तर समझो। अगरचे वह तुम्हारे मन मानी चीज़ों तक तुम्हें पहुंचा दे। क्योंकि अपने नफ्स की इज्ज़त जो खो दोगे उस अल्लाह ने तुम्हें आज़ाद बनाया है। उस भलाई में कोई बेह्तरी नहीं जो बुराई के ज़रीए हासिल हो, और उस आरामो आसाइश में कोई बेहतरी नहीं जिस के लिये (ज़िल्लत की) दुशवारियां झेलना पड़ें।

ख़बरदार!तुम्हें तम्ओ हिर्स की तेज़ रौ सवारियां हलाकत के घाट पर न ला उतारें। अगर हो सके तो यह करो कि अपने और अल्लाह के दरमियान किसी वालीये नेमत को वासिता न बनने दो क्यों कि तुम अपना हिस्सा और अपनी क़िस्मत पा कर रहोगे। वह थोड़ा जो अल्लाह से, बे मिन्नते ख़ल्क़ मिले, उस बहुत से कहीं बेहतर है जो मख्लूक़ के हाथों से मिले। बे महल ख़ामोशी का तदारूक बे मौक़ा गुफ्तगु से आसान है। बर्तन में जो है उस की हिफ़ाज़त यूं ही होगी कि उस का मुंह बन्द रखो, और जो कुछ तुम्हारे हाथ है उस को महफूज़ रखना दूसरों के आगे दस्ते तलब बढाने से मुझे ज़यादा पसन्द है। यास की तलखी सह लेना लोगों के सामने हाथ फैलाने स बहतर है। पाक दामनीके साथ मेहनत मज़दूरी कर लेना फ़िस्क़ो फुजूर में घिरी हुई दौलत मन्दी से बेहतर है। इन्सान खुद ही अपने राज़ को खूब छिपा सकता है। बहुत से लोग ऐसी चीज़ों के लिये कोशां होते हैं जो उन के लिये ज़रर रसां साबित होती है। जो ज़ियादा बोलता है वह बे मअनी बातें करने लगता है। सोच बिचार से क़दम उठाने वाला (सहीह रास्ता देख लेता है)। नेकों से मेल जोल रखोगे तो तुम भी नेक हो जाओगे। बुरों से बचे रहोगे तो उनके असरात से महफूज़ रहोगे। बद्तरीन खाना वह है जो हराम हो, और बद्तरीन जुल्म वह है जो किसी कमज़ोर व नातवां पर किया जाए। जहां नर्मी से काम लेना न मुनासीब हो वहां सख्तगीरी ही नर्मी है। कभी कभी दवा बीमारी और बीमारी दवा बन जाया करती है। कभी बदख्वाह भलाई की राह सुझा दिया करता है, और दोस्त फ़रेब दे जाता है। ख़बरदार! उम्मीदों के सहारे न बैठना, क्यों कि उम्मीदें अहमकों का सर्माया होती हैं। तजरिबों को महफूज़ रखना अक्लमन्दी है, बेह्तरीन तजरीबा वह है जो पन्दो नसीहत दे। फुर्सत का मौका ग़नीमत जानो, क़ब्ल इस के कि वह रंजो अन्दोह का सबब बन जाए। हर तलब व सई करने वाला मक्सद को पा नहीं लिया करता, और हर जाने वाला पलट कर नहीं आया करता। तोशे का खो देना और आक़िबत बिगाड़ लेना बर्बादी व तबाह कारी है। हर चीज़ का एक नतीजा व समरा हुआ करता है, जो तुम्हारे मुक़द्दर में है वह तुम तक पहुंच कर रहेगा। ताजिर अपने को ख्तरों (जोखिम) में ड़ाल ही करता है, कभी थोड़ा माल माले फ़रावां से ज़ियादा बा बरकत साबित होता है। पस्त तीनत मददगार में कोई भलाई नहीं, और न बद गुमान दोस्त में। जब तक ज़माने की सवारी तुम्हारे क़ाबू में है उस से निबाह करते रहो, ज़ियादा की उम्मीद में अपने को खतरों में न डालो। खबरदार! कहीं दुशमनी व इनाद की सवारियां तुम से मुंह ज़ोरियां न करने लगें। अपने को अपने भाई के लिये इस पर आमादा करो कि जब वह दोस्ती तोड़े तो तुम उसे जोड़ो वह मुंह फेरे तो तुम आगे बढ़ो और लुत्फो मेहरबानी से पेश आओ। वह तुम्हारे लिये कंजूसी करे, तुम उस पर खर्च करो। वह दूरी इखतियार करे तो तुम उस के नज़दीक़ होने की कोशिश करो। वह सख्ती करता रहे तुम नर्मी करो। वह खता का मुर्तकिब हो और तुम उस के लिए उज्र तलाश करो। यहां तक कि गोया तुम उस के गुलाम और वह तुम्हारा आक़ाए नेमत है.....मगर खबरदा। यह बर्ताव बे महल न हो और ना अहल से यह रवैया इख्तेयार करो। अपने दोस्त के दुशमन को दोस्त न बनाओ, वर्ना उस दोस्त के दुशमन करार पाओगे। दोस्त को खरी खरी नसीहत की बाते सुनाओ ख्वाह उसे अच्छी लगें या बुरी। गुस्से के कड़वे घोंट पी जाओ, क्यों कि मैं ने नतीजे के लिहाज़ से इस से ज़ियादा खुश मज़ा व इस से शिरीं घूंट नहीं पाया। जो शख्स तुम से सख्ती से पेश आए उस से नर्मी का बर्ताव करो क्यों कि इस रवेये से वह खुद ही नर्म पड़ जायेगा। दुशमन पर लुत्फो करम के ज़रीए राहे चारा व तदबीर मसदूद कर दो। क्यों कि दो किस्म की क़ामयाबियों में यह ज़ियादा मज़े की कामयाबी है। अपने किसी दोस्त से तअल्लुकात कतअ करना चाहो तो अपने दील में इतनी जगह रहने दो कि अगर उस का रवैया बदले तो उस के लिये गुंजाइश हो। जो तुम से हुस्त्रे ज़न रखे उस के हुस्त्रे ज़न को सच्चा साबित करो। बाहमी रवाबित की बिना पर अपने किसी भाई की हक़ तलफी न करो, क्यों कि फिर वह भाई कहां रहा जिस का तुम हक़ तलफ़ करो, यह न होना चाहिये कि तुम्हारे घर वाले तुम्हारे हाथों दुनिया जहान में सब से ज़ियादा बद बख्त हो जायें। जो तुम से तअल्लुकात काएम रखना पसन्द ही न करता हो, उस के ख्वामख्वाह पीछे न पड़ो। तुम्हारा दोस्त क़तए तअल्लुक करे तो तुम रिशतए मुहब्बत जोड़ने में उस पर बाज़ी ले आओ, और वह बुराई से पेश आए तो तुम हुस्त्रे सुलूक में उस से बढ़ जाओ। ज़ालिम का ज़ूल्म तुम पर गिरां न गुज़रे क्यों कि वह अपने नुक्सान और तुम्हारे फाएदे के लिये सर गर्मे अमल है, और जो तुम्हारी खुशी का बाइस हो उस का सिला यह नहीं है कि उस से बुराई करो।

ऐ फर्ज़न्द यक़ीन रखो कि रिज़्क दो तरह का होता है। एक वह जिस की तुम जुस्तजू करते हो, और एक वह जो तुम्हारी जुस्तजू में लगा हुआ है। अगर तुम उस की तरफ़ न जाओगे तो भी वह तुम तक आ कर रहेगा। ज़रुरत पडने पर गिड़गिड़ाना और मतलब निकल जाने पर कज खुल्की से पेश आना कितनी बुरी आदत है। दुनिया से बस उतना ही अपना समझो जिस से अपनी उक्बा की मंज़िल संवार सको। अगर तुम हर उस चीज़ पर जो तुम्हारे हाथ से जाती रहे वावैला मचाते हो तो फिर हर उस चीज़ पर रंजो अफसोस करो कि जो तुम्हें नहीं मिली। मौजूदा हालात से बाद में आने वाले हालात का क़ियास करो। उन लोगों की तरह न हो जाओ कि जिन पर नसीहत कारगर नहीं होती जब तक उन्हें पूरी तरह तकलीफ़ न पहुंचाई जाए, क्यों कि अक्ल मन्द बातों से मान जाते हैं, और हैवान लातों के बगैर नहीं माना करते। टूट पड़ने वाले गमो अन्दोह को सब्र की पुख्तगी और हुस्त्रे यकीन से दूर करो। जो दरमियानी रास्ता छोड़ देता है वह बे राह हो जाता है। दोस्त बमंज़िलए अज़ीज़ के होता है। सच्चा दोस्त वह है जो पीठ पीछे भी दोस्ती निबाहे। हवा व हवस से ज़हमत में पड़ना लाज़मी है । बहुत से क़रीबी बेगानों से भी बेतअल्लुक होते हैं, और बहुत से बेगाने करीबियों से भी ज़ियादा नज़दीक होते हैं। परदेसी वह है जिस का कोई दोस्त न हो। जो हक़ से तजावुज़ कर जाता है उस का रास्ता तंग हो जाता है। जो अपनी हैसियत से आगे नहीं बढ़ता उस की मंज़िलत बर्करार रहती है। तुम्हारे हाथों में सब से ज़ियादा मज़बूत वसीला वह है जो तुम्हारे और अल्लाह के दरमियान है। जो तुम्हारी पर्वाह नहीं करता वह तुम्हारा दुशमन है। जब हिर्स व तमअ तबाही का सबब हो तो मायूसी ही में कामरानी है। हर ऐब ज़ाहिर नहीं हुआ करता। फुर्सत का मौक़ा बार बार नहीं मिला करता। कभी आंखो वाला सहीह रास्ता खो देता है और अंधा सहीह रास्ता पा लेता है। बुराई को पसे पुश्त ड़ालते रहो, क्यों कि जब चाहोगे उस की तरफ़ बढ़ सकते हो। जाहिल से इलाक़ा तोड़ना अक्ल मन्द से रिश्ता जोड़ने के बराबर है। जो दुनिया पर एतमाद कर के मुत्मइन हो जाता है दुनिया उसे दगा दे जाती है। और जो उसे अज़मत की निगाहों से देखता है, वह उसे पस्तो ज़लील करती है। हर तीर अंदाज़ का निशाना ठीक नहीं बैठा करता जब हुकूमत बदलती है तो ज़माना बदल जाता है। रास्ते से पहले शरीके सफर और घर से पहले हमसाया से मुतअल्लिक पूछ गूछ कर लो। खबरदार अपनी गुफ्तगू में हंसाने वाली बातें न लाओ अगर्चे वह नक्ले क़ौल की हैसियत से हों। औरतों से हरगिज़ मशविरा न लो, क्यों कि उन की राय कमज़ोर और इरादा सुस्त होता है। उन्हें पर्दे में बिठा कर उन को आंखों की ताक़ झांक से रोको, क्यों कि पर्दे की सख्ती उन की इज़्ज़त व आबरू को बर्करार रखने वाली है। उन का घरों से निकलना इस से ज़ियादा खतर्नाक नहीं होता जितना नाक़ाबिले एतमाद को घर में आने देना। अगर बन पड़े तो ऐसा करो कि तुम्हारे अलावा किसी और को वह पहचानती ही न हों। औरत को उस के ज़ाती उमूर के अलावा दूसरे इख्तियार न सौंपो। क्यों कि औरत एक फूल है, वह कार फरमां और हुकमरां नहीं है। उस का पासो लिहाज़ उस की ज़ात से आगे न बढ़ाओ और यह हौसला पैदा न होने दो कि वह दूसरों की सिफ़ारिश करने लगे। बे महल शुब्हा व बदगुमानी का इज़हार न करो कि इस से नेक चलन और पाकबाज़ औरत भी बे राही व बद किर्दारी की राह देख लेती है। अपने खिदमत गुज़ारों में हर शख्स के लिये एक काम मुअय्यन कर दो जिस की जवाब देही उस से कर सको। इस तरीके कार से वह तुम्हारे कामों को एक दूसरे पर न टालेंगे। अपने क़ौम क़बीले का एहतेराम करो क्यों कि वह तुम्हारे ऐसे परो बाल हैं जिन से तुम पर्वाज़ करते हो, ऐसी बुनियादें हैं जिन का तुम सहारा लेते हो, और तुम्हारे वह दस्तो बाज़ू हैं जिन से हमला करते हो। मैं तुम्हारे दीन और दुनिया को अल्लाह के हवाले करता हूं और उस से हाल व मपस्तकबिल और दुनिया व आखरत में तुम्हारे लिये भलाई के फैसले का ख्वास्तगार हूं। वस्सलामः

इबने मीसम ने जअफर इबने बाबवैहे क़ुम्मी अलैहिर्रहमा का यह क़ौल नक्ल किया है कि हज़रत ने यह वसियत नामा मोहम्मद इबने हनफिया रज़ी अल्लाहो तआला अन्हो के नाम तहरीर फरमाया है, और अल्लामा रज़ी ने तहरीर किया है कि इस से मुराद मुखातिब इमाम हसन (अ0 स0) हैं। बहर सूरत मुखातिब ख्वाह इमाम हसन (अ0 स0) हों या मोहम्मदे हनफिया, या मंशूरे इमामत तमाम नौए इन्सानी के लिये दर्से हिदायत है कि जिस पर अमल पैरा होने से सआदत व कामरानी की राहें खुल सकती हैं, और इन्सानियत के भटके हुए काफिले जादए हिदायत पर ग़ामज़न हो सकते हैं। इस में दुनिया व आखिरत को संवारने अखलाक़ी शऊर को उभारने और मईशतो मुआशरत को सुधारने के वह बुनियादी उसूल दर्ज हैं जिन की नज़ीर पेश करने से ओलमा व फलासफा के ज़खीर दफातिर कासिर हैं। इस के हक़ायक आंगीं मवाइज़ इन्सानियत के भूले हूए दर्स को याद दिलाने हुस्त्रे मुआशरत के मिटे हुए नुकूश को ताज़ा करने और अख्लाकी रिफअतों को उभारने के लिये कवी मुहर्रिक हैं।

मकतूब (पत्र) – 32

मुआविया के नामः—

तुम ने लोगों की एक बड़ी जमाअत को तबाह कर दिया है, अपनी गुमराही से उन्हें फ़रेब दिया है, और उन्हें अपने समुन्दर की मौजों में डाल दिया है। उन पर तारीक़ियां छाई हुई हैं, और शुब्हात की लहरें उन्हें थपेड़े दे रही हैं, जिस के बाद वह सीधी राह से बे राह हो गए, उल्टे पैरों फिर गए, पीठ फेर कर चलते बने, और अपने हसब व नसब पर भरोसा कर बैठे। सिवा कुछ अहले बसीरत के जो पलट आए, और तुम्हें जान लेने के बाद तुम से अलायहदा हो गए, और तुम्हारी नुसरत व इम्दाद सो मुंह मोड़ कर अल्लाह की तरफ़ तेज़ी से चल पड़े। जब कि तुम ने उन्हें दुशवारियों में मुब्तला कर दिया था और एतिदाल की राह से हटा दिया था।

ऐ मुआविया। अपने बारे में अल्लाह से डरो, और अपनी मिहार शैतान के हाथ से छीन लो, क्यों कि दुनिया तुम से बहर हाल क़तअ हो जायेगी, और आख़िरत तुम्हारे क़रीब पहुंच चुकी है। वस्सलाम।

मकतूब (पत्र) – 33.

वालिये मक़्क़ा कुसम इबने अब्बास के नामः—

मग़रिबी इलाके (पश्चिमी क्षेत्र) के मेरे जासूस (गुप्तचर) ने मुझे तहरीर किया (लिखा) है कि कुछ शाम के लोगों को (मक्का) हज के लिये रवाना किया गया है, जो दिल के अंधे, कानों के बहरे, और आंखों की रौशनी से महरुम (वंचित) हैं। जो हक़ को बातिल की राह से ढ़ूंढ़ते हैं, और अल्लाह की मअसियत (अपराध) में मखलूक की इताअत (आज्ञा पालन) करते हैं, और दीन (धर्म) के बहाने दुनिया के (थनों से) दूध दुहते हैं, और नेकों और पर्हेज़गारों के अजर आख़िरत को हाथों से दे कर दुनिया का सौदा कर लेते हैं। देखो। भलाई उसी के हिस्से में आती है, जो उस पर अमल करता है, और बुरा बदला उसी को मिलता है जो बुरे काम करता है। लिहाज़ा तुम अपने फ़रायज़े मंसबी (पदीप कर्तब्यों) को उसी तरह अदा करो जो बा फ़हम (समझदार), पुख्ताकार (अनुभवी) ख़ैर ख़्वाह (शुभ चिन्तक) और दानिशमन्द (बुद्घिमान) हो, और अपने हाकिम (शासक) का फरमां बर्दार (आज्ञा कारी) और अपने इमाम का मुतीइ (अनुन्यायी) रहे, और खबर दार। कोई ऐसा काम न करना कि तुम्हें मअज़िरत (क्षमा याचना) करने की ज़रुरत पेश आए, और नेमतों की फरावानी (वर्दानों की अधिकता) के वक्त कभी इतराओ नहीं और सख़्तियों (कठिनाइयों) के मौक़े पर बोदा पन न दिखाओ। वस्सलाम।

मुआविया ने कुछ लोगों को हाजियों के भेस में मक्का रवाना किया ताकि वहां कि ख़ामोश फ़िज़ा (शांति पूर्ण वातावरण) में सन्सनी पैदा करें, और तकवा और वरअ (संयम एवं इन्द्रिय निग्रह) की नुमाइश (प्रदर्शन) से अवाम का एतिमाद हासिल (जनता का विश्वास प्राप्त) कर के उन के यह ज़ेहन नशीन कर दें कि अली इबने अबी तालिब ने हज़रते उसमान के खिलाफ़ (विरुद्घ) लोगों को भड़काया और बिल आखिर (अन्ततोगत्व) उन्हें कत्ल कर के दम लिया, और इस तरह हज़रत को उन के क़त्ल का ज़िम्मेदार ठहरा कर अवाम को उन से बदज़न (दूषित) करें, और अमीरे शाम के किर्दार की बुलन्दी अख़्लाक की अज़मत और दादो देहिश (दान दक्षिणा) के तज़किरों से लोगों को उस की तरफ़ मायल करें। मगर हज़रत ने जिन लोगों को शाम में हालात का जायज़ा लेने और खबर रसानी (सूचना देने) के लिये मुक़र्रर (नियुक्त) कर रखा था उन्हों ने जब आप को इत्तिलाअ दी तो आप ने वालिये मक्क़ा कुसम इबने अब्बास को उन की नक़्लो हरक़त (गतिविधियों) पर नज़र रखने और उन की शोरिश अंग़ेज़ियों (उपद्रवी कार्यवाहियों) के इनसिदाद (निराकरण) के लिये यह मकतूब (पत्र) तहरीर फ़रमाया।

मकतूब (पत्र) – 34.

मोहम्मद इबने अबा बकर के नाम, उस मौक़े पर जब आप को मअलूम हुआ कि वह मिस्र की हुकूमत से अपनी मअजूली (अपदस्थता) और मालिक़े अश्तर के तक़र्रुर (नियुक्ति) की वजह से रंजीदा (क्षुब्ध) हैं, और फिर मिस्र पहुंचने से पहले ही मालिके अश्तर रास्ते ही में इन्तिक़ाल कर गए, तो आप ने मोहम्मद को तहरीर फरमायाः---

मुझे इत्तिलाअ मिली है कि तुम्हारी जगह पर अश्तर को भेजने से तुम्हें मलाल हुआ है, तो वाक़िआ यह है कि मैं ने यह तब्दीली इस लिये नहीं की थी कि तुम्हें काम में कमज़ोर और ढ़ीला पाया हो, और यह चाहा हो कि तुम अपनी कोशिश को तेज़ कर दो, और अगर तुम्हें इस मंसबे हुकूमत से जो तुम्हारे हाथ में है, मैं ने हटाया था, तो तुम्हें ऐसी जगह की हुकूमत सिपुर्द करता जिस से तुम्हें ज़हमत कम हो, और वह तुम्हें पसन्द भी ज़ियादा आए।

बिला शुब्हा जिस शख्स को मैं नं मिस्र का वाली बनाया था वह हमारा ख़ैर ख़्वाह (शुभ चिन्तक) और दुशमनों के लिये सख्तगीर (कठोर) था। खुदा उस पर रहमत करे। उस ने ज़िन्दगी के दीन पूरे कर लिये, और मौत से हमकनार हो गया। इस हालात में कि हम उस से रज़ामन्द हैं। खुदा की रज़ामन्दियां भी उसे नसीब हों, और उसे बेश अज़ बेश सवाब अता करे। अब तुम दुशमन के मुक़ाबिले के लिये बाहर निकल खडे हो, और अपनी बसीरत के साथ रवाना हो जाओ, और जो तुम से लड़े उस से लडने के लिये आमादा हो जाओ, और अपने पर्वरदिगार की राह की तरफ़ दअवत दो, और ज़ियादा से ज़ियादा अल्लाह से मदद मांगो कि वह तुम्हारी मुहिम्मात में किफ़ाैयत करेगा, और मुसीबतों में तुम्हारी मदद करेगा, इन्शाअल्लाह।

मकतूब (पत्र) – 35.

मिस्र में मोहम्मद इबने अबी बकर के शहीद हो जाने के बाद अब्दुल्लाह इबने अब्बास के नामः—

मिस्र को दुशमनों ने फ़तह कर लिया, और मोहम्मद इबने अबी बकर रहमतुल्लाहे अलैहे शहीद हो गए। हम अल्लाह ही से अज्र चाहते हैं, उस फ़र्ज़न्द के मारे जाने पर कि जो हमारा ख़ैर ख़्वाह, सरगर्म कारकुन, तेगे बुराँ और दिफाअ का सुतून था, और मैं ने उन को लोगों की मदद को जाने की दअवत दी थी, और इस हादिसे से पहले उन की फर्याद को पहुँचने का हुक्म दिया था और लोगों को अलानिया और पोशीदा बार बार पुकारा था। मगर हुआ यह कि कुछ आये भी तो बादिले नाख़्वास्ता, और कुछ हिले हवाले करने लगे, और कुछ ने झूठे बहाने कर के अदमे तआवुन किया। मैं तो अब अल्लाह से यही चाहता हूं कि वह मुझे इन के हाथों से जल्द छुटकारा दे। खुदा की क़सम। अगर दुशमन का सामना करते वक्त मुझे शहादत की तमत्रा न होती और अपने को मौत पर ामादा न कर चुका होता, तो मैं इन के साथ एक दिन भी रहना पसन्द न करता और इन्हें साथ ले कर कभी दुशमन की जंग को न निकलता।

मकतूब (पत्र) – 36.

जो अमीरुल मोमिनीन (अ0 स0) ने अपने भाई अक़ील इबने अबी तालिब के ख़त के जवाब में लिखा है जिस में किसी दुशमन की तरफ़ भेजी हुई एक फ़ौज का ज़िक्र किया हैः—

मैं ने उस की तरफ़ मुसलमानों की एक भारी फ़ौज रवाना की थी। जब उस को पता चला तो वह दामन गर्दान कर भाग खड़ा हुआ और पशिमान हो कर पीछे हटने पर मजबूर हो गया। सूरज डूबने के क़रीब था कि हमारी फ़ौज ने उसे एक रास्ते में जा लिया और न होने के बराबर कुछ झड़पें हुई होंगी, और घड़ी भर ठहरा होगा कि भाग कर जान बचा ले गया। जब कि उसे गले से पकड़ा जा चुका था और आख़िरी सांसों के सिवा उस में कुछ बाक़ी न रह गया था इस तरह बड़ी मुश्किल से वह बच निकला।

तुम कुरैश के गुमराही में दौड़ लगाने, सरकशी मों जौलानियां करने और ज़लालत में मुंह जोरी दिखाने की बातें छोड़ दो। उन्हों ने मुझ से जंग करने की उसी तरह एका किया है। जिस तरह वह मुझ से पहले रसूलुल्लाह (स0) से लड़ने के लिये एका किये हुए थे। खुदा करे उन की करनी उन के सामने आए। उन्हों ने मेरे रिश्ते का कोई लिहाज़ न किया और मेरे मां जाए की हुक़ूमत मुझ से छीन ली, और जो तुम ने जंग के बारे में मेरी राय दर्याफ्त की है तो मेरी आख़िरी दम तक यही राय रहैगी कि जिन लोगों ने जंग को जायज़ करार दे लिया है उन से जंग करना चाहिये। अपने गिर्द लोगों का जमघटा देख कर मेरी हिम्मत नहीं बढ़ती और न उन के छट जाने से मपझे घबराहट होती है। देखो। अपने भाई के मुतअल्लिक, चाहे कितना ही लोग उस का साथ छोड़ दें, यह ख़्याल कभी न करना कि वह बे हिम्मत व बे हिरासां हो जायेगा, या कमज़ोरी दिखाते हुए ज़िल्लत के आगे झुकेगा या मिहार देगा। या सवार होने वाले के लिये अपनी पुश्त को मर्कब बनने देगा। बल्कि वह तो ऐसा है जैसा क़बीलए बनी सलीम वाले ने कहा हैः---

अगर तुम मुझ से पुछती हो कि कैसे हो। तो सुनो। कि मैं ज़माने की सख़्तियां झेल ले जाने में बड़ा मज़बूत हूं। मुझे यह गवारा नहीं कि मुझ से हुजनो ग़म के आसार दिखाई पड़े कि दुशमन खुश होने लगें और दोस्तों को रंज पहुंचे।

तहक़ीम के बाद जब मुआविया ने क़त्लो ग़ारत का का बाज़ार गर्म किया तो ज़हाक़ इबने कैस फ़ेहरी को चार हज़ार के लशकर के हमराह हज़रत के मक़बूज़ा शहरों पर हमला करने के लिये रवाना किया। हज़रत को जब उस की ग़ारत ग़रियों का इल्म हुआ तो आप ने अहले कूफ़ा को उस के मुक़ाबले के लिये उभारा मगर उन्हों ने हीले बहाने शुरुउ कर दिये। आख़िर हुज्र अबने अदिये किन्दी चार हज़ार जंग जुओं को ले कर उठ ख़ड़े हुए और दुशमन का तआक़ुब करते हुए मक़ामे तदबिर में उस को जा लिया। दोनों फ़रीक़ में कुछ ही झड़पें हुई थीं कि शाम का अंधेरा फ़ैलने लगा और वह उस से फ़ायदा उठा कर भाग खड़ा हुआ। वह यह जानता था कि अक़ील इबने अबी तालिब मक्के में उमरह बजा लाने के लिये आये हुए थे। जब उन्हें यह मअलूम हुआ कि ज़हाक़ हीरी पर हमला करने के बाद सही व सालिम बच निकला है और अहले कूफ़ा जंग से जी छोड़ बैठे हैं और उन की तमाम सर गर्मियां खत्म हो गई हैं, तो आप ने नुसरत व इम्दाद की पेश कश करते हुए उबैदुर्रहमान इबने उबैदे अज़्दी के हाथ एक मकतूब हज़रत की खिदमत में रवाना किया जिस के जवाब में हज़रत ने यह मकतूब तहरीर फरमाया है, जिस में अहले कूफ़ा के रवैये का शिकवा, और ज़हाक़ के फ़रार का शिकवा किया है।

मकतूब (पत्र) – 37.

मुआविया के नामः—

अल्लाहो अक़बर। तुम नफ़्सानी ख़्वाहिशात और ज़हमत व तअब में डालने वाली हैरत व सर गश्तगी से किस बुरी तरह चिमटे हुए हो, और साथ ही हक़ायक़ को बर्बाद कर दिया है, और उन दलायल को ठुकरा दिया है जो अल्लाह को मतलूब और बन्दों पर हुज्जत हैं। तुम्हारा उसमान और उन के कातिलों के बारे मों झगड़ा बढ़ाना क्या मअनी रखता है। जब कि तुम ने उसमान की उस वक्त मदद की जब वह मदद खुद तुम्हारी ज़ात के लिये थी, और उस वक्त उन्हें बे यारो मददगार छोड़ दिया कि जब तुम्हारी मदद उन के हक़ में मुफ़ीद हो सकती थी। वस्सलाम।

इस में गुंजाइशे इन्कार नहीं कि मुआविया ने हज़रत उसमान के क़त्ल होने के बाद उन की नुसरत का दअवा किया और जब वह मुहासिरे के दिनों में उस से मदद मांग रहे थे और खुतूत पर खुतूत लिख रहे थे उस वक्त उस ने कर्वट लेने की ज़रुरत महसूस नहीं की। अलबत्ता कहने को उस ने यज़ीद इबने असदे क़सरी के ज़ेरे कमान एक दस्ता मदीने की तरफ़ रवाना किया लेकिन उसे यह हुक्म दे दिया था कि वह मदीने के क़रीब वादिये ज़ी खशब में ठहरा रहे और हालात ख़्वाह कैसे ही हो जायें वह मदीने में दाखिल न हो। चुनांचे वह वादिये ज़ी खशाब में आ कर ठहर गया। यहां तक कि हज़रत उसमान क़त्ल कर दिये गए, और वह अपना दस्ता ले कर वापस हो गया।

इस में शुब्हा नहीं कि मुआविया यही चाहता था कि हज़रते उसमान क़त्ल हो जायें और वह उन के खून के नाम पर हंगामा आराई करे और इन शोरिश अंगेज़ीयों के ज़रिए से अपनी बैअत के लिये रास्ता हमवार करे। यही वजह है कि न उन के मुहासिरे के दिनों में उस ने उन की मदद व नुसरत की, और न इक़तिदार हासिल कर लेने के बाद क़ातिलाने उसमान की तलाश ज़रुरी सणझी।

मकतूब (पत्र) – 38.

अहले मिस्र के नाम, जब कि मालिके अश्तर को वहां का हाक़िम बनायाः—

खुदा के बन्दे अली अमीरुल मोमिनीन (अ0 स0) की तरफ़ से उन लोगों के नाम, जो अल्लाह के लिये ग़ज़ब नाक (क्रुद्घ) हुए उस वक्त ज़मीन में अल्लाह की ना फ़रमानी (अवज्ञा) और उस के हक़ की बर्बादी हो रही थी, और ज़ुल्म ने अपने शामियाने हर अच्छे बुरे मक़ामी (स्थानीय) और परदेसी पर तान रखे थे। न नेकी का चलन था और न बुराई से बचा जाता था।

तुम्हें मअलूम होना चाहिये कि मैं ने अल्लाह के बन्दों में से एक बन्दा तुम्हारी तरफ़ भेजा है जो ख़तरे के दिनों में सोता नहीं और ख़ौफ़ का घड़ियों में दुशमन से हिरासां नहीं होता, और फ़ाजिरों के लिये जलाने वाली आग से भी सख्त है। वह मालिक अबने हारिसे मजहजी हैं। उन की बातो सुनो और उन के हर हुक्म को, जो हक़ के मुताबिक हो, मानो क्यों कि वह अल्लाह की तलवारों में से एक तलवार हैं कि जिस की धार कुन्द होती है और न उस का वार खाली जाता है। अगर वह तुम्हें दुशमनों की तरफ़ बढ़ने के लिये कहें तो बढ़ो, और ठहरने के लिये कहें तो ठहरो, क्यों कि वह न मेरे हुक्म के बग़ैर आगे बढ़ेंगे और न पीछे हटेंगे। न किसी को पीछे हटाते हैं और न आगे बढ़ाते हैं। मैं ने उन के बारे में तुम्हें खुद उन के ऊपर तर्जीह दी है, इस ख्याल से कि तुम्हारे ख़ैर ख्वाह और दुशमनों के लिये सख्तगीर साबित होंगे।

मकतूब (पत्र) – 39.

अमर इबने आस के नामः---

तुम ने अपने दीन को एक ऐसे शख्स की दुनिया के पीछे लगा दिया है जिस की गुमराही ढकी छिपी हुई नहीं है। जिस का पर्दा चाक है। जो अपने पास बिठा कर शरीफ़ इन्सान को भी दाग़दार, और संजीदा व बुर्दबार शख्स को बेवकूफ़ बनाता है। तुम उस के पीछे लग गए और उस के बचे खुचे टुकड़ों के ख़्वाहिशमन्द हो गए। जिस तरह कुत्ता शेर के पीछे हो लेता है, उस के पंजों को उम्मीद भरी नज़रों से देखता हुआ और इन्तिज़ार में कि उस के शिकार के बचे खुचे हिस्से में से कुछ आगे पड़ जाए। इस तरह तुम ने अपनी दुनिया व आखिरत दोनों को गंवाया। हालां कि अगर हक़ के पाबन्द रहते तो भी तुम अपनी मुराद को पा लेते। अब अगर अल्लाह ने मुझे तुम पर और फ़र्ज़न्दे अबू सुफ़ियान पर ग़लबा दिया तो मैं तुम दोनों को तुमहारे करतूतों का मज़ा चख़ा दूंगा, और अगर तुम मेरी ग़िरफ्त में न आए और मेरे बाद ज़िन्दा रहे तो जो तुम्हें उस के बाद दरपेश होगा वह तुम्हारे लिये बहुत बुरा होगा। वस्सलाम।

मकतूब (पत्र) – 40.

एक आलिम के नामः---

मुझे तुम्हारे मुतअल्लिक एक ऐसे अम्र की इत्तिलाअ मिली है कि अगर तुम उस के मुर्तकिब हुए हो तो तुम ने अपने पर्वरदिगार को नाराज़ किया, अपने इमाम की नाफरमानी की और अपनी अमानत दारी को भी ज़लील व रुसवा किया।

मुझे मअलूम हुआ है कि तुम ने (बैतुलमाल) की ज़मीन को सफ़ाचट मैदान कर दिया है और जो कुछ तुम्हारे पांव तले था, उस पर कब्ज़ा जमा लिया है, और जो कुछ तुम्हारे हाथों में था, उसे नोशे जान कर लिया है। तो तुम ज़रा अपना हिसाब मुझे भेज दो, और यक़ीन रखो कि इन्सानों की हिसाब फ़हमी से अल्लाह का हिसाब कहीं ज़ियादा सख्त होगा। वस्सलाम।