मुंज़िर इबने जारुदे अब्दी के नाम जब कि उस ने ख़ियानत की (उपभोग किया) बअज़ उन चीज़ों में जिन का इन्तिज़ाम (प्रबंध) आप ने उस के सिपुर्द किया थाः---
वाक़िआ (वास्तविकता) यह है कि तुम्हारे बाप की सलामत रवी (शुभा चरण) ने मुझे तुम्हारे बारे में धोका दिया। मैं यह ख्याल करता था कि तुम भी उन की रविश (आचरण) की पैरवी (अनुसरण) करते और उन की राह पर चलते होगे। मगर अचानक मुझे तुम्हारे मुतअल्लिक (सम्बंध में) ऐसी इत्तिलाआत (सूचनायों) मिली हैं जिन से ज़ाहिर होता है कि तुम अपनी नफ़्सानी ख़्वाहिशात (स्वार्थ सम्बंधी इच्छाओं) की पैरवी (अनुसरण) से हाथ नहीं उठाते और आख़िरत के लिये तोशा रखना नहीं चाहते। तुम अपनी आख़िरत गंवा कर दुनिया बना रहे हो, और दीन से रिश्ता (नाता) तोड़ कर अपने रिश्तेदारों के साथ सिलए रहिमी (सद ब्यवहार) कर रहे हो। जो मुझे मअलूम हुआ है अगर वह सब सच है तो तुम्हारे घर वालों का ऊंट और तुम्हारी जूती का तस्मा भी तुम से बेहतर है। जो तुम्हारे तौर तरीक़े (आचरण) का आदमी हो वह इस लायक़ (योग्य) नहीं कि उस के ज़रीए (द्गारा) किसी रखने (विध्न) को पाटा जाय या कोई काम अंजाम दिया जाय या उस का रुत्बा (पद) बढ़ाया जाए या उसे अमानत में शरीक (सम्मिलित) किया जाए या खियानत (उपभोग) की रोक थाम के लिये उस पर इत्मीनान (विश्वास) किया जाए। लिहाज़ा जब मेरा ख़त (पत्र) मिले तो फ़ौरन (तत्काल) मेरे पास हाज़िर (उपस्थित) हो जाओ इंशाअल्लाह।
सौयिद रज़ी फ़रमाते हैं कि यह मुंज़िर वही है कि जिस के बारे में अमीरुल मोमिनीन (अ0 स0) ने फ़रमाया है कि वह इधर उधर अपने बाज़ुओं (भुजाओं) को बहुत देखता है, और अपनी दोनों चादरों में गुरुर (घमण्ड) से झूमता हुआ चलता है और अपनी जूती के तस्मे पर फूंक मारता रहता है कि कहीं उस पर गर्द न जम जाए।
अब्दुल्लाह इबने अब्बास रहमतुल्लाह के नामः---
तुम अपनी ज़िन्दगी की हद (सीमा) से आगे नहीं बढ़ सकते और न उस चीज़ को हासिल (प्रापंत) कर सकते हो जो तुम्हारे मुकद्दर (भाग्य) में नहीं है, और तुम्हें मअलूम होना चाहिये कि यह ज़माना (काल) दो दिनों पर तक़्सीम (विभाजित) है, एक दिन तुम्हारे मुवाफ़िक़ (पक्ष में) और दिन तुम्हारा मुख़ालिफ़ (विरोधी), और दुनिया ममलिक़तों (हुकूमतों) के इंकिलाब व इंतिक़ाल (क्रान्ति एवं स्थानान्तरण) का घर है। इस में जो चीज़ तुम्हारे फायदे (लाभ) की होगी वह तुम्हारी कमज़ोरी व नातवानी के बा वजूद पहुंच कर रहेगी और जो चीज़ तुम्हारे नुक्सान (अहित) की होगी उसे तुम कुव्वत व ताक़त से भी नहीं हटा सकते।
मुआविया के नामः---
मैं तुम से सवालो जवाब के तबादले और तुम्हारे ख़तों (पत्रों) के तवज्जह (ध्यान) के साथ सुनने में अपने तरीक़ए कार (कार्य पद्घति) की कमज़ोरी और अपनी समझ की गलती का एहसास (आभास) कर रहा हूं, और तुम जो अपनी ख़्वाहिय़ों (इच्छाओं) के मनवाने के मुझ से दरपय होते हो और मुझ से ख़तो क़िताबत (पत्राचार) का सिलसिला जारी किये हुए हो, तो ऐसे हो गए हो कि जैसे कोई गहरी निन्द से पड़ा ख़्वाब देख रहा हो और बाद में उस के ख़्वाब बे हक़िक़त साबित हों, या कोई ऐसे हैरत ज़दा मुंह उठाए ख़डा हो कि न उस के लिये जाए रफ़तन हो न पाए मांदन (न रुकते बनता हो न जाते) और उसे कुछ ख़बर न हो कि सामने आने वाली चीज़ उसे फ़ायदा (लाभ) देगी या नुक्सान (हानि) पहुंचायेगी। ऐसा नहीं कि तुम बिल्कुल ही वही शख्स हो बल्कि वह तुम्हारे मानिन्द (समान) है। और मैं खुदा की क़सम खा कर कहता हूं कि अगर किसी हद तक तरह देना मैं मुनासिब (उचित) न समझता होता तो मेरी तरफ़ से ऐसी तबाहीयों का तुम्हें सामना करना पड़ता, जो हड्डियों को तोड़ देती, और जिस्म पर गोश्त का नाम न छोड़तीम। इस बात को खूब समझ लो कि शैतान ने तुम्हें सुनने से रोक दिया है। सलाम उस पर कि जो सलाम के क़ाबिल (योग्य) है।
जो हज़रत के क़बीलए रबीआ और अहले यमन (यमन वासियों) के मा बैन (बीच) बतौर मुआहदा (प्रतिज्ञा पत्र स्वरुप) तहरीर फ़रमाया (उल्लिखित किया) इसे हिशाम इबने साइबे कल्बी की तहरीर (लेख) से नक़्ल (उद्घरित) किया गया है।
यह है वह अहद नामा (प्रतिज्ञा पत्र) जिस पर अहले यमन ने, वह शहरी हों या दिहाती, और क़बीलए रबीआने, वह शहर में आबाद हों या बादिया नशीन, (ख़ाना बदोश) इत्तिफ़ाक किया है (सहमति प्रकट की है) कि वह सब के सब किताबुल्लाह पर साबित क़दम (दृढ़) रहेगे, उसी की तरफ़ दअवत (निमंत्रण) देंगे, उसी के साथ (अनुसार) हुक्म (आदेश) देंगे और जो उन की तरफ़ दअवत देगा और उस की रु से (अनुसार) हुक्म देगा, उस की आवाज़ पर लब्बैक कहेंगे, न उस के एवज़ (बदले में) कोई फ़ायदा (लाभ) चाहेगें, और न उस के बदल पर राज़ी (सहमत) होंगे। और जो क़िताबुल्लाह के खिलाफ़ (विरुद्घ) चलेगा और उसे छोड़ देगा, उस के मुक़ाबिले में मुत्तहिद (संगठित) हो कर एक दूसरे का हाथ बटायेंगे। उन की आवाज़ एक होगी और वह किसी सरज़निश (भर्त्सना) करने वाले की सरज़निश की वजह से, किसी गुस्सा (क्रोध) करने वाले के गुस्से की वजह से, एक जमाअत (समूह) के दूसरी जमाअत (समूह) को गाली देने से, इस अहद (प्रतिज्ञा) को नहीं तोड़ेंगे। बल्कि हाज़िर या ग़ैर हाज़िर (उपस्थित अथवा अनुपस्थित) कम अक्ल (बुद्घिविहीन) आलिम (विद्घान), बुर्दबार (शालीन), जाहिल (अज्ञान) सब इस के पाबन्द रहेंगे। फिर इस अहद (प्रतिज्ञा) की वजह से उन पर अल्लाह का अहदो पैमैन (प्रतिज्ञा एवं प्रण) भी लाज़िम (अनिवार्य) हो गया है और अल्लाह का अहद पूछा जायेगा।
काबिले सुतूर (पंक्तियों का लेखक) अली इबने अबी तालिब।
शुरुउ-शुरुउ में जब आप की बैअत की गई तो आप ने मुआविया इबने अबी सुफ़यान के नाम लिखा। (इसे वाक़िदी ने क़िताबुल जमल में उल्लिखित किया है।)
खुदा के बन्दे अली अमीरुल मोमिनीन (अ0 स0) की तरफ़ से मुआविया इबने अबी सुफ़यान के नामः---
तुम्हें मअलूम हैं कि मैं ने लोगों के बारे में पूरे तौर पर हुज्जत ख़त्म कर दी और तुम्हारे मुआमलात से चश्म पोशी (आंख बन्द) करता रहा, यहां तक कि वह वाक़िआ (घटना) हो कर रहा कि जिसे होना था, और रोका न जा सकता था। यह क़िस्सा लम्बा है और बातें बहुत हैं। बहर हाल जो ग़ुज़रना था ग़ुज़र गया और जिसे आना था आ गया। लिहाज़ा उठो और ्पने यहां के लोगों से मेरी बैअत हासिल करो और अपने साथियों के वफ़्द (प्रतिनिधि मण्डल) के साथ मेरे पास पहुंचो। वस्सलाम।
अब्दुल्लाह इबने अब्बास के नाम जब कि उन्हें बसरा में अपना क़ायम मक़ाम मुक़र्रर फ़रमाया (प्रतिनिधि नियुक्त किया)।
लोगों से कुशादा रुई (खुले दिल सदभाव) से पेश आओ। अपनी मजलिस (सभा) में लोगों की राह (रास्ता) दो, हुक्म में तंगी रवा न रखो, गुस्से से परहेज़ करो क्यों कि यह शैतान के लिये शगूने नेक (शुभ शकुन) है और उस बात को जाने रहो कि जो चीज़ तुम्हें अल्लाह के क़रीब (निकट) करती है वह दोज़ख् से दूर करती है और जो चीज़ अल्लाह से दूर करती है वह दोज़ख़ से क़रीब करती है।
जो अब्दुल्लाह इबने अब्बास को ख़वारिज से मुनाज़िरा करने के लिये भेजते वक्त फ़रमाई।
तुम उन से कुरआन की रु (के आधार पर) से बहस न करना, क्यों कि कुरआन बहुत से मअनी (अर्थों) का हामिल (धारक) होता है और बहुत सी वजहें (दिशायें) रखता है। तुम अपने कहते रहोगे, वह अपनी कहते रहेंगे। बल्कि तुम हदीस से उन के सामने इसतिदलाल (तर्क) करना, यह उस से ग़ुरेज़ (पलायन) की कोई राह न पा सकेंगें।
अबू मूसा अशअरी के नाम, हकमैन के सिलसिले में, उन के एक ख़त (पत्र) के जवाब में, इसे सईद इबने यहया उमवी ने अपनी किताब, अलमग़ाज़ी में दर्ज किया है।
कितने ही लोग हैं जो आखिरत (परलोक) की बहुत सी सआदतें (सौभाग्य) से महरुम (वंचित) हो कर रह गए, वह दुनिया के साथ हो लिये।ख़्वाहिशे नफ्सानी से बोलने लगे। मैं इस मुआमले की वजह से हैरत व इस्तेजाब (आश्चर्य) की मंज़िल में हूं कि जहां ऐसे लोग इकट्टे (एकत्र) हो गए हैं जो खुद बीन (स्वलोकन) और खुद पसन्दी में मुब्तला (ग्रस्त) हैं। मैं उन के ज़ख्म (घाव) का मुदावा (उपचार) तो कर रहा हूं मगर डरता हूं कि कहीं वह मुंजमिद खून (जमे हुए रक्त) की सूरत इखतियार (रुप धारण) कर के ला इलाज न हो जाए। तुम्हें मअलूम होना चाहिये कि मुझ से ज़ियादा कोई शख्स (ब्यक्ति) भी उम्मते मोहम्मद (स0) की जमाअत बन्दी और इत्तिहादे बाहमी (परस्पर एकता) का ख़्वाहिश मन्द नहीं है, जिस से मेरी ग़रज सिर्फ़ हुस्त्रे सवाब और आख़िरत की सरफ़राज़ी (परलोक की सर बलन्दी) है, मैं ने जो उहद (प्रण) किया है उसे पुरा कर के रहुंगा अगरचे तुम उस नेक ख़्याल से कि जो मुझ से आख़िरी मुलाक़ात तक तुम्हारा था, अब पलट जाओ, यक़ीनन वह बदबख्त हैं कि जो अक्लो तजरिबा के होते हुए उस के फ़वायद से महरुम रहे। मैं तो इस बात पर पेचोताब खाता हूं कि कोई कहने वाला बातिल बात कहे या किसी ऐसे मुआमले को ख़राब होने दूं कि जिसे अल्लाह दुरुस्त कर चुका हो। लिहाज़ा जिस बात को तुम नहीं जानते उस के दरपय न हो। क्यों कि शरीर (दुष्ट) लोग बुरी बातें तुम तक पहुंचाने के लिये उड़ कर पहुंचा करेंगे। वस्सलाम।
जो ज़ाहिरी ख़िलाफ़त पर मुतमक्किन होने के बाद फ़ौजी सिपह सालारों को तहरीर फ़रमाया।
अगले लोगों को इस बात ने तबाह (नष्ट) किया कि उन्हों ने लोगों के हक़ रोक लिये तो उन्हों ने (रिश्वतें दे दे कर) उसे खरीदा, और उन्हें बातिल का पाबन्द बनाया तो वह उन के पीछे उन्हीं रास्तों पर चल खड़े हुए।